Book Title: Jainpad Sagar 01 Author(s): Pannalal Baklival Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha View full book textPage 6
________________ विज्ञापना। . विदित हो कि जैन साहित्यके संगीत विभागमें एक भाr जैन पदोंका (भजनों ) का घढा भारी है, जिसमें सैकड़ों प्राचीन अर्वाचीन कधियोंके हजारों पद भजन होंगे उनमें दो एक बुकसे. लरोंने कविवर धनारसी, धानतराय भूधरदास, भागचंद, दोलन. राम बुधजनके पदोंका संग्रह भिन्न २ छपाया है परंतु उनमें प्रमानी हजूरी, (हजरी पदोंमें भी जिनवाणीस्तुनि, गुरुस्तुनि, बधाई ) होरी. आदि उपदेशी अध्यात्मोपदेशी अध्यात्मीक विषयके संकड़ों पद .भजन है, परंतु भिन्न भिन्न विषयोंके भजन एकही जगह अनेक फ। वियोंके पदोंका संग्रह किसीने भी नहिं छपाये। गायक अनेक नैनी भाई मित्र २ रुचिवाले होते है कोई भाई हजुरी पदोंका गाना । पसंद करते है कोई भाई उपदेशो, वा वैराग्यमय अध्यात्मोक ' पदोंका गाना पसंद करते हैं, इस कारण हमने बडे परिश्रमसे समस्त कवियोंके पदोंको गायकर अर्थको समझ कर मिन २ विषयोंके छांटकर भिन्न २ संग्रह तैयार करके लिखने और उपाने का प्रबंध किया है। दो वर्ष पहिले हमने उक्त कवियोंके उपर्यक नौ विषयोंके पदोंका संग्रह किया था परंतु उनके छपानेका यह द्रव्य साध्य कार्य नहिं कर पाये । भय इन समस्त पदोंके छपानेका भार कलकत्ते की भारतीय जैनसिद्धांतप्रकाशिनी संस्थाने स्वीकार कर लिया है इसकारण अब इन सब पदोंको बहुत शुद्ध कठिन शन्दों पर टिप्पणी सहित कपड़ेके चेलनसे पवित्रताके साथ छापना प्रारंभ किया है उनमेसे जैनपदसागरके प्रथमभागका प्रयम.Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 213