Book Title: Jainpad Sagar 01
Author(s): Pannalal Baklival
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ १४३ जिनवानीके सुनेसों मिथ्यात मिटे समकित प्रगटे जिनवानी को को नहि तारे जिनवैन सुनत मोरी भूल भगी जिन साहिब मेरे हो निमाहिये दासको जो मोहि मुनिको मिलावै ताकी बलिहारी ० तारनको जिनवानी तिहारी याद होते ही मुझे अमृत बरसता है ૨૨ त्रिभुवनमानंदकारी जिनयि थारो नैननिहारो त्रिभुवन में नामी कर करुणा जिन खामी तुम गुनमनिनिधि हो मरहंत तुम चरननकी सरन आय सुखपायो तुमःतार ककणाधार खामो आदि देव निरंजनो तुम बिन जगमें कौन हमारा तुम शांतिसागर शांतिदायक शांति द्यो इस दासको (दर्शन) १८१ तुम सुनियो श्रीजिनराजा भरज इक मेरीजी तुम ज्ञानविभव फूली बसंन यह मनमधुकर सुखसों रमंत जिनवर स्वामी मेरा, मैं सेवक प्रभु हों तेरा तूही तूही याद मोहि मावे जगतमें तेरी भक्ति विना धिक है जीवना १२१ थांका गुण गास्याजी आदि जिनंदा

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 213