Book Title: Jainpad Sagar 01
Author(s): Pannalal Baklival
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 11
________________ जगदानंदन जिन अभिनंदन पद अरविंद नमूं मैं तेरे ६ अब पानी खिरी महावीरकी, तव आनंद भयो अपाराजी १४५ जय जय जग भरमतिमरहरन जिनधुनी . . १६ जय जय नेमिनाथ परमेश्वर जय जिनवासुपूज्य शिवरमनीरमन मदनदनुदारन है . जयवंतो जिनविध जगतमें जिन देखत निज पाया है । जय धीर जिनकी जिनबीर जिनचंद जय शिवकामिनिकंत वीर भगवंत अनंत सुखाकर ३० नय श्रीरिपम जिनंदा नाश तो करो स्वामी मेरे दुख दंदा जय श्रीवीरजिनंदचंद्र शत इबंध जगतार २० ना कहां तज सरन तिहारे जिन छवि यह तेरी धन जगतारन जिन रागरोप त्यागा वह सत गुरु हमारा (दौलत) १४६ जिन रागरोप त्यागा सो सतगुरु हैं हमारा (मानिक) १६६ जिनराय मोहि भरोसो भारी जिनरायके पाय सदा सरन जिनधुनि सुनि दुरमति नसि गई रे . .. .. १४४ जिनमुख अनुपम सूर्य निहारत भ्रमतम दूर भगाया है १७ जिनवर माननमाननिहारत भ्रमतमधान नशाया है जिनवर मूरत तेरी शोभा कहिय न जाय जिनवानी प्यारी लागे छ महाराज जिनवानी सुन सुरत संभारे

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