Book Title: Jainpad Sagar 01
Author(s): Pannalal Baklival
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 16
________________ ७८ [ ] पानी जिनकी वखानी हो जो, वाकों सब मुनि मनमें मानी · १४२. बंदों जिनदेव सदा चरन कमल तेरे बंदों नेमि उदासी मद मारवेको. बधाई चंद पुरीमैं आज बधाई भाई हो तुम निरखत जिनराय बधाई राजै हो माज राजे वधाई राजे १८६ घामाघर बजत बधाई चल देखरी माई बेगि सधि लीज्योम्हारी श्रीजिनराज भई आज वधाई निरखत जिनराई भज ऋषिपति ऋषमेत ताहि नित नमत अमर पुरा भज जिन चतुरविसति नाम भजरे मनुवा प्रभु पारसको भये आज अनंदा जनमे चंदजिनंदा भवदधितारक नवका जगमाही जिनवान भवनसरोरुहसूर भूरिगुनपूरित अरहता : भाई धन मुनि ध्यान लगायक खरे हैं भोर भयो भज श्रीजिनराज सफल होय तेरे सब काज भोर भयो सब भविजन मिलकर जिनवर पूजन आवो १९२ १३७ ३२ मनकै हरष अपार चितके हरष अपार बानी सुन मनुवो लागिरहोजी मुनिपूजा बिन रह्यो.न जाय

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