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(३) सम्मत्त (सम्यक्त्व)
प्रस्तावना :
'सम्यक्त्व' (सम्मत्त) जैनधर्म की आधारशिला है । इसका दूसरा नाम 'सम्यकदर्शन' अर्थात् 'सच्ची श्रद्धा' - इस प्रकार किया जाता है । सम्यक्दर्शन अथवा सच्ची श्रद्धा का अंग्रेजी अनुवाद सामान्यत:right faith अथवा right believe इस प्रकार किया जाता है । 'सम्यक्त्व' यह नाम ‘सम्+अञ्च' क्रियापद (verb) से घटित हुआ है । इसमें पक्षपातरहित (impartial) और मध्यस्थ दृष्टि अभिप्रेत है । सम्यक्त्वी व्यक्ति किसी भी एक तरफ झुककर निर्णय नहीं लेता अथवा मत प्रदर्शन नहीं करता ।
जैन परंपरा में कहे हुए द्रव्य, तत्त्व, लोकस्वरूप आदि पर बिना पूछताछ, बिना परीक्षा या बिना जिज्ञासा खाली अंधविश्वास रखना 'सम्यक्त्व' या 'सम्यक् श्रद्धा' नहीं है । द्रव्य, तत्त्व, आचार आदि का प्राथमिक ज्ञान, 'शाब्दिक ज्ञान' (verbalknowledge) है । यह ज्ञान प्राप्त करना तो आवश्यक ही है । बाद में बुद्धि, तर्क, जिज्ञासा आदि से इस शब्दज्ञान की चिकित्सा करना आवश्यक है । इसी वजह से कहा जाता है कि ‘पण्णा समिक्खए धम्म' । (प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा करें ।) इस परीक्षा से जब सभी शंकाएँ दूर होती है तब सच्चे अर्थ में सम्यक्त्व का उदय होता है । सम्यक्त्व के उदय से ज्ञान को भी अपने आप सम्यक्त्व प्राप्त हो जाता है । जिस प्रकार विनय धर्म का मूल भी हैऔर फल भी है उसी प्रकार सम्यक्त्व मोक्ष का मूल भी है और फल भी है । तीन अलग-अलग परिप्रेक्ष्य में सम्यक्त्व के तीन अर्थ हम बता सकते हैं - १) व्यावहारिक दृष्टि से और बोलचाल की भाषा में सम्यक्त्व' याने सच्चे देव, सच्चे गुरु और सच्चे धर्म पर श्रद्धा
२) आध्यात्मिकता की दृष्टि से 'सम्यक्त्व' याने आत्मा का अस्तित्व मानना तथा आत्मा को अनंत शक्तियों से युक्त मानना । ३) 'सम्यक्त्व' का अर्थ अभ्यासकों ने Enlightened worldview - इस पदावलि से भी स्पष्ट किया है ।
भावार्थ स्पष्टीकरण : (१) छद्दव्व णव पयत्था --- षड्द्रव्य : 'द्रव्य' का भाषांतर (substance, entity) अथवा (reality) इस प्रकार किया जाता है । पूरे लोक के सभी द्रव्य इस छह प्रकारों में बाटें जा सकते हैं । इसकी दूसरी तरह यह भी व्याख्या की गयी है कि, 'लोक षड्ड्यात्मक है' । लोक याने जगत का यह विश्लेषण वैज्ञानिक दृष्टि से किया गया है । क्योंकि ये षड़द्रव्याealities है । यह मानसिक (psychological) या नैतिक (ethical) विश्लेषण नहीं है।
धर्म (medium of motion) गतिसहायक द्रव्य है । अधर्म (medium ofrest) स्थितिसहायक द्रव्य है । आकाश (space) सभी द्रव्यों को अवकाश, जगह देनेवाला द्रव्य है । काल (time), जीव और अजीवों में पाये जानेवाले अवस्थांतरों का आधारभूत द्रव्य है । पुद्गल (matter, atom, molecule) वर्ण, रस, गंध, स्पर्श युक्त मूर्त अजीव द्रव्य है । जीव (living being, soul, self) चैतन्ययुक्त अमूर्त द्रव्य है । इनमें से पुद्गल के व्यतिरिक्त अन्य पाँच द्रव्य अरूपी एवं अमूर्त (non-material, incorporeal) हैं । पुद्गल रूपी एवं मूर्त (material, corporeal) है
अस्तिकाय : इन षड्द्रव्यों में से जो व्यापक (extensive and extended) द्रव्य हैं उन्हें अस्तिकाय कहते हैं । जैनों ने माना है कि काल छोडकर सभी पाँच द्रव्य व्यापक है । काल को एकरेषीय याने (linear) माना गया है । काल के सूक्ष्म भाग एक-दूसरे में मिश्रित नहीं होते । इसलिए कालद्रव्य अस्तिकाय नहीं है ।
नौ पदार्थ : जैन शास्त्र के अनुसार नौ तत्त्व (tenets) इस प्रकार हैं । जीव (आत्मा) (living being, soul,