Book Title: Jainism Course Part 03 Author(s): Maniprabhashreeji Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi View full book textPage 7
________________ आशीर्वचन માતા- સિદ્ધીચિ પરિપૂઝિય઼ શ્રમનામને નમ: श्री विजय प्रेम-भुवनभानु-जय- धर्मजिव-जयशेखरसूरीश्वरेभ्यो नमः विदुषी साध्यश्री मणिप्रभाश्रीजी ! सादर अनुवन्दना सुखशालापृच्छा.... तीन साल - ९ विभाग में प्याप्त जैनिज़्म कोर्स पाठकों के जीवन में सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्रिया को वर्धमान बनाने में सुसफल रहो ऐसी परमकृपालु परमात्मा से प्रार्थना पाठकों से भी अनुरोध कि वे इस कोर्स के अध्ययन में, पुनरावर्तन में तथा परीक्षा में नियमित बने रहे. प्रमाद को परवा न बने.. प्रभु ने ज्ञान-क्रियाभ्यां मोक्षा कहा है. इस कोर्स से प्राप्त ज्ञान को जीवन सक्रिय बनाकर सफल बनाये. - आचार्य अभयशेखरसूरि. विनयवती विदुषी साध्वीजी श्री मणिप्रभाश्रीजी आदि द्वाणा सुखशाता पृच्छा. आपके द्वारा संस्कार युद्धक जैनिज्म का जो कोर्स प्रकाशित किया जा रहा है। उसके प्रति हमारी हार्दिक शुभ कामनाये हैं। में बाल युवा वर्ग अयोग्य वर्तमान युग आचरणाओं को अपना कर मानव भव को हार रहा है। ऐसे समय में संस्कार वर्द्धक साहित्य की आवश्यकता है। यह साहित्य बाल युवा वर्ग को मार्ग दर्शक बनें। यही शुभाभिलाषा जयानंद धावा.Page Navigation
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