Book Title: Jainendra Kahani 10
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 147
________________ चक्कर -सदाचार का ! मैं कुछ चक्कर मे हू । मालूम न था कि सदाचार मे भी चदकर I ---- निकल आएगा । शायद अपने वारे मे कुछ यहा कहने की जरूरत है । तीस वर्ष का हू, विवाहित हू, ग्रच्छी आय है । लेकिन मुझ पर काम की जिम्मेदारी बिल्कुल नही है और एक कार मेरे लिए अलग कर दी गई है । पिताजी का कहना है, जिसमे भाई साहब सहमत है, कि फल बडो की सेवा का मिलता है । काम करने वाले हम हैं ही तुम पढे-लिखे हो, समाजसेवा की रुचि रसो र सार्वजनिक सम्पर्कों की ओर ध्यान दो । यह सलाह मेरी वृत्ति और प्रकृति के अनुकूल है और मैं मिलने-जुलने का काम किया करता हू । - अब बात यह है कि सदाचार की जरूरत है—और भ्रष्टाचार की बिलकुल जरूरत नही है । कहा जाता है कि भ्रष्टाचार यो रहा होगा हर काल मे, पर जरूरत की माना के ग्रन्दर । ग्रव जरूरत की रेखा से वह बाहर था रहा है । ठीक ही है कि समाज के और राज के नेता लोग उधर व्यान दे । उस ध्यान देने के कारोवार मे मेरे जैसा व्यक्ति सम्मिलित न होगा, यह कैसे हो सकता है । मेरे पास समय था, कार थी, साधन चे श्रीर काम बेहद श्रावश्यक व समाजोपयोगी था । श्रत देसा गया कि में दोड-धूप मे हू मेह और भ्रष्टाचार की रोकथाम के प्रयत्नों में व्यस्त हू । नदाचार होना चाहिए र उसको जारी करने और रखने का काफी भार अपने कधो अनुभव करता रहता हूँ । लेकिन श्रवस्था मेरी तीन ही वर्ष है । इस कारण कुछ मर्यादाएं हैं ।

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