Book Title: Jainendra Kahani 10
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 148
________________ जैनेन्द्र की कहानिया दसवा भाग हुआ यह कि सदाचार समिति के अध्यक्ष का स्थान खाली हुआ, जो थे उनको बडा पोहदा दिया गया और वह दूर चले गए। कुछ दिनो तक सोच-विचार चलता रहा । एक रोज मिस्टर वर्मा, जो यो सदाचार में कुछ न थे, मगर डिप्टी सेक्रेटरी थे और सदाचार वाली समिति के लिए नेपथ्य के सूत्रधार थे, एकाएक पूछ बैठे, "शर्मा जी को जानते हो?" __ "कौन शर्मा जी ?" "अच्छा, नही जानते हो ?" उस प्रतिप्रश्न मे लगा, यह तो बात गडबड हुई जा रही है। गने जल्दी से कहा, "शर्मा जी, एक तो अपनी ही तरफ है, कमलानगर में।" मिस्टर वर्मा ने मेरी ओर देखा । उन दृष्टि में दया थी और मानो क्षमा भी थी। मुझे लगा कि मैं उन निगाह मे गिर रहा है। मुझे हर हालत में नहते रहना चाहिये था । इसलिये कहा, "कहिए, उन्हें क्या कहना होगा?" "जाने दो, तुम उन्हें नहीं जानते ।" "लेकिन-जी-" मिस्टर वर्मा जरा हने और घटी बजा कर मेशन आफिनर मानूम किया कि हा, गर्मा जी उधर कम ना नगर मे ही रहते है। मैंने मपट कहा कि उन्हें तो में सूब जानता है । यहिए? वर्मा मुस्कराए, वोले, "एच० एम० का रयाल था गि अध्यक्षता पे लिए उनमें यहा जाय । तुम" "शर्मा जी से " मैने भरसक स्वर को दुमानी रगा। गर्मा जी थे तो एक हमारे मोहल्ले में, पर ननकी से आदमी नमझे जाते थे । सात की अपनी मार्वजनिा दोष-धूप में मभी मुझे उनकी प्रास्यकता नहीं हुई। गुना था कोई हैं, कुछ है । लेकिन अध्यक्षता में प्रसग में इस तरह उनमा नाम सीये एन० एम० की तरफ से सुनने को मिल जाएगा, प्रगती

Loading...

Page Navigation
1 ... 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179