Book Title: Jainendra Kahani 10 Author(s): Purvodaya Prakashan Publisher: Purvodaya Prakashan View full book textPage 168
________________ जैनेन्द्र की कहानिया दसवा भाग १६८ पर अनेक जन और थें । उसमे हुआ कि हाय, ये नही जानते है । हुप्रा कि में इन्हें क्षमा करता हू । श्रौर तब ऊपर वाले परमात्मा से भी उसने कहा कि सुन, तू भी इन्हे क्षमा कर देना । बेचारे है औौर पागल है | हम-तुम जैसे परमात्मा को पहचान नही सकते है } अगस्त '६५.Page Navigation
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