Book Title: Jaindharmvarstotra Godhulikarth Sabhachamatkareti Krutitritayam
Author(s): Hiralal R Kapadia
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 13
________________ भाणरत्ननामधेय एको विनेय इति प्रतीयते 'जैनधर्मवरस्तोत्र'स्य स्वोपज्ञवृत्तेः प्रान्तस्थेन निम्नसूचितेन पाठेन द्वितीयो ज्योतीरत्नाह्वय इति ज्ञायते प्रतिमाशतकस्य लघुवृत्तिगतेन निम्नलिखितेन पाठेन "इति श्रीमत्पूर्णिमागच्छीयभट्टारकश्रीभावप्रभसूरिसमुद्धता 'प्रतिमाशतक' लघुवृत्तिरियं शिष्यज्योतीरत्नस्य हेतवे सम्पूर्णा" हेमचन्द्राभिधस्तृतीयश्छात्र आसीदित्यनुमीयते सभाचमत्कारस्य निम्नोल्लिखितया पङ्क्त्या "महिमाप्रभसूरीश तेहना विनेयी भावे कह्या एक एकथी करी दुगुणा हेमचंद हेते वह्या" सूरिवराणां गुरुपरम्परा एतेषां कविवराणां गुरुपरम्पराऽवगम्यते बुद्धिलविमलासतीरासगतेनोल्लेखेन / स चायम् "प्रधान' साषा जीहां सोभति पूर्निम गच्छ हो जगमांहि प्रसीद्ध श्रीविद्याप्रभ सूरीसरा भट्ट जीति हो वादि पद लीध शी० 8 तस पट उदयाचल रवि भट्टारक हो ललीतप्रभसूरींद ललीत वाणी जेहनी सूंणी भवि भाजें हो भव भवना फंद शी० 9 तस पट कुवलयचंद्रमा भट्टारक हो विनयप्रभ नाम / जन. देइ देसना सीषवीनें हो करें विनयनुं धाम शी० 10 तस पट पद्म प्रभाकरा भट्टारक हो महिमाप्रभ सूर महिमा महियल जेहनो उतार्या हो जिणे वादि नुर शी० 11 गच्छ चोरासीइं जेहनी किर्ति विस्तरी हो नीरमल गोपीर सकल आगम वेत्ता वरू गितारथ हो बहुं गूणें गंभीर शी० 12 1. पूर्वनिर्दिष्टस्य सङ्कलितस्य प्रशस्तिसङ्ग्रहस्याधारेण कृतोऽयमुल्लेखो मया / लेखकदोषपरिहारार्थं न क्रियते प्रयासोऽत्र /

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