Book Title: Jain Yatra Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 44
________________ (१६) टिकट बंगलौर सहरका लेवे ॥ बीचमें ज्वालारपेठके इष्टेसन ऊपर रातको बाराबजे इस रेलसे उतरके बिंगलौर जानेवाली रेलमें बैठे सो दिन उगते सातबजे उतरे || रेलसे थोडी दूर तलाव है वहां जैनका छतर है उनमें ठहरे || इसका नाम धर्मशाला है ॥ इहांसे पाव मील बडे बजारके नजीक गली में जिनापा श्रावकके घरके नजीक एक दिगंबर मंदिर है | इस विंगलौर में पंचम श्रावकों के बीस घर हैं | इस देश में ये सहर बहुत बडा है | और छावनी न्यारी है सो बहुत ash है ये सहर मैसूर राजाका है ॥ २७ ॥ बिंग-' लौरसे टिकट मैसूरका लेवे ॥ तीनपहरमें रेल पहुँचती है | रेलसे एक मील बजार है | वहां तिमापा मोती काने पंचम श्रावक लखपती असामी है | इनके sri बडा मकान है वहां ठहरे | इन सेठके चार बेटे हैं || शांतराज ॥ अनंतराज ॥ ब्रह्मसूरि ॥ पद्मराज ॥ और तिमापाके बडे भाइ वीरापा है इनके जी बेटे हैं ॥ मंदिर एक है ॥ चैत्यालय चार हैं | ये सहर वडा है राजाका राज है ॥ इहां राजंना श्रावक है सो संस्कृत विद्या पढा है ॥ इहांसे गाडीभाडे करे | तीन दिनका खानेका सामान लेवे ॥ इहांसे बाहुबलीकी यात्राको जावे ॥ पचास मील है ॥ २० ॥ मैसूरसे ॥ 1

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