Book Title: Jain Tirth Parichayika
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 11
________________ चतुर्थ संस्करण के विषय में दो शब्द ! इतने अल्प समय में ही इसका चतुर्थ संस्करण पाठकों की जिज्ञासा और रुचि को ध्यान में रखते हुए करना पड़ा। इस नवीन संस्करण में पंजाब, मुम्बई, जलगाँव आदि के नवीनतम तीर्थों की जानकारी तो समाहित की ही गयी है साथ ही अनेक स्थानों के फोन, पते आदि परिवर्तित होने के कारण उन्हें भी संशोधित किया गया है। मार्गों एवं ठहरने की व्यवस्थाओं में भी सभी उपलब्ध नवीन जानकारियों को समाहित किया गया है। लुधियाना के कर्मठ समाजसेवी एवं लुधियाना संक्रान्ति मण्डल के अध्यक्ष श्री प्रवीण जैन ने विशेष रुचि लेकर हमें हर प्रकार से सहयोग प्रदान किया है। हम उनके आभारी हैं। लुधियाना के ही श्री धनराजजी जैन आदि ने पंजाब की जानकारी प्रदान करने में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आप दोनों के प्रयासों से हमें पंजाब, जम्मू आदि की सही जानकारी एवं व्यवस्थाओं के विषय में सूचनाएं उपलब्ध हो सकी। तीर्थयात्रियों के लिए यह जानकारी अत्यन्त महत्व रखती हैं। आशा है पाठकगण परिचायिका के इस नवीन स्वरूप को पसन्द करेंगे और अपने लिए और अधिक उपयोगी पायेंगे। यदि इन जानकारियों के अतिरिक्त अन्य कोई उपयोगी जानकारी, सुझाव आदि पाठकगण देना चाहें, तो निःसंकोच हमें लिखें ताकि आगामी संस्करणों में उन्हें समाहित किया जा सके। गुजरात की भीषण विपदा के कारण गुजरात के अनेक ऐतिहासिक जैन मन्दिर क्षतिग्रस्त हुए हैं। तथा उनके विषय में पुस्तक के प्रकाशन के समय तक सही स्थिति का पता नहीं चल सकने के कारण हम उस विषय में अधिक कुछ लिखने की स्थिति में नहीं हैं। अतः गुजरात की भूकंप से पूर्व की ही जानकारी समाहित की गयी है। वहाँ क्षतिग्रस्त तीर्थों में से कइयों का जीर्णोद्धार कार्य युद्ध स्तर पर प्रारम्भ हो गया है। इसकी नवीनतम जानकारी हम अपने आगामी संस्करण में समाहित करने हेतु प्रयासरत रहेंगे। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jaine bviiv.org

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