Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Author(s): Gulabchand Dhadda
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 15
________________ तीसरी जैन श्वेताम्बर कॉनफरन्स. १९०५ ] १५ जो शनै शनै जात्योन्नति और धार्मिकोन्नति यह सभा करती जाती है और जिसका साक्षात प्रकाश समय पाकर होसक्ता है उसको तो उस समय देखा जावेगा के जिस समय उसका प्रकाश होगा परन्तु इस वक्त इस पुष्ट बच्चेने जो जो चमत्कार दिखलाये हैं उनमें से किसी कदर नीचे मुजब बतलाये जाते हैं: १. साल दर साल कुल जैन समुदायके चुने हुवे प्रतिनिधियोंका के जो धनवान, बुद्धिवान, विद्यावान, होते है एक जगह इकट्ठे होकर जाति और धर्म की बातों पर बिचार करना. २. देश देशके जैनियों में के जिनका आपस में इस तरहपर शामिल होने का मोका शायदही उम्रभरमें मिलता हो आपसकी मुलाकात, सम्यकी वृद्धि और भ्रातृभाव का बढना. ३. एक दूसरे की मुलाकातसें हरएक के दुःखदर्दकी बात दूसरे पर जाहिर होना. ४. जीर्णमन्दिरोद्धार का प्रयत्न होना. ५. जीर्ण पुस्तकोद्धार का प्रबन्ध होना. ६. निराश्रितों को आश्रयका उपाय बतलाकर उनका खयाल रखना. विद्याका प्रचार. ७. ८. जीव दयाकी तरफ लागणी. ९. जैन समुदाय में जैन विधिके मुवाफिक फेरोंका होना. १०. हानिकारक रीतिरीवाजों की बुराइया दिखलाकर उनके बन्ध और कम करनेका यत्न. ११. उपदेशकों का जगह जगह जाना. १२. कुल जैन समुदायके ग्रेज्युएटोंका इस कोनफरन्सके सहाई होनेकी गरज सें एक मण्डलका कायम होना. १३. कोनफरन्सकी कार्यवाहीकों आमतोर पर समजाने और प्रचलित करने के वास्ते मासिक पत्रका शुरु होना. १४. राजा महाराजावोंका इस मण्डल में शामिल होकर सहाई होना. १९. पबलिक ओपिनियन ( Public Opinion ) का उत्पत्ति होना इत्यादि अनेक प्रकार के फायदे इस कोनफरन्सके होनेसें नजर आने लगे हैं. हर चीज समय पाकर बदलती रहती है और उस बदली हुई हालतके मुवाफिक जो काम नहीं करता तो उसको पीछे पश्चात्ताप करना पडता है - एक समय ऐसा था कि जब अपने धर्मकी उन्नति अपने बलवान धर्माचार्य व राजा महाराजा करतेथे अब यह समय आगया है कि जिसमे कुल समुदाय को मिलकर उन्नति करना चाहिये और कुल समुदायकों इसके फायदों का पूरे तोरपर ज्ञान होना चाहिये. इस जैन पबलिक ओपिनियन कायम होकर तरक्की पानेसें सब दिक्कतें दूर होजावेंगी और आयन्दा साधारण तोरपर वह वह बड़े काम होते रहेगें के जिनकों देख देख कर लोग चकित हो जावें गे.

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