Book Title: Jain Shiddhanta Pathmala
Author(s): Saubhagyachandra
Publisher: Ajaramar Jain Vidyashala

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Page 6
________________ प्रासंगिक वक्तव्य. जैन सिद्धांतोमा अतिप्रचलित. अने तेटलांज ज्ञानगंभीर बे सूत्रो श्रीउत्तराध्ययन तथा श्रीदशवकालिकनुं व्याख्यान द्वारा वारंवार अनुशीलन थयेलं, तेमां रहेली त्याग वैराग्यनी भावनाने समाजनी वर्तमानस्थितिने बंध वेसे तेवी रीते आध्यात्मिक दृष्टिबिन्दुथी घटाडवा पुनः पुनः प्रयत्न सेवेलो. अने तेथी पा अमृतभयाँ सूत्रोनो टुंकाणमां सस्कृत अर्थवालो टवो थाय तो संस्कृत भाषामा प्रवेश करनारने तेनु वांचन सुलभ थइ शके ते इरादाथी जुदेजुदे वखते बन्ने सूत्रोनो संस्कृत टवार्थ (शब्दार्थ पुरतो) में तैयार करी लहीमा पासे (न्याख्यान वाचनमाटे) पत्राकारे लखावी राख्यो हतो. दरस्यान गत चातुर्मास (लिंबडी)नी शल्यातमांज विद्याशाळाना कार्यवाहकोए "जैन सिर्वात पाठमाळा" नी नवी श्रावृत्ति पाववा माटे अने उपयोगी वधारो करवा मारी पासे मागणी करी. मने ते मागणी गमी गइ, परंतु विचार करता जणायुं के श्रावा उत्तम शास्त्रीय ग्रंथोने, पुस्तक प्रसिद्धिना श्रा युगमां वधु सरळ, सुगम्य वनाववाथी एटले के संस्कृत छायारूपे भाषान्तर करवाथी वधारे लोक ग्राह्य थशे, एथी ते बन्ने सूत्रोना टवा उपरथी संस्कृतछाया कठिन के पारिभाषिक शब्दोनां गुजराती टिप्पण साथे करवानो इरादो राखी ते कार्य आरंभवार्नु कवुल कयु. ते अरसामांज मारी तवीयत लथडी एटले के मूळ श्रजीर्णनुं दरद हतुं तेमां अमुक संजोगो मळवाथी वधारो थयो जेथी मगजमारीनुं काम हुँ जाते करी शकुं तेवी मारी स्थिति रही नहिं पाखरे में हाथमां लीधेलु कार्य संस्कृत अने प्राकृत व्याकरणना खास अग्यासी, विद्याविलासी अने उत्साही शिष्य मुनिश्री सौभाग्यचंद्रजीने सोप्यु. अने जेमजेम तबीयत सुधारा उपर श्राववा लागी तेमतेम दरेक मुफ तपासवान में

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