Book Title: Jain Shiddhanta Pathmala
Author(s): Saubhagyachandra
Publisher: Ajaramar Jain Vidyashala

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Page 15
________________ ॐ * नमो समणस्स भगवओ महावीरस्स जैन सिद्धांत पाठमाळा संस्कृतच्छायायुतं दशवैकालिक सूत्रम् । ॥ दुमपुफिया पढमं अभय || ॥ द्रुमपुष्पिकानाम प्रथममध्ययनम् ॥ हिंसा संज्ञमी तयो । जस्स धम्मे सया मो धम्मी मंगल, देवा वितं नर्मसंति, धर्मे मंगल मुल्कुष्ट महिंसा संयम स्तपः देवा अपि तं नमस्येति यस्य धर्मे सदा मनः जहा दुमरस पुप्फेसु, भमरो प्राविग्रह रसं । य पुष्कं किलामेर, सोय पी अप्प यथा द्रुमस्य पुप्पेषु भ्रमर आपिवति रसम् । न च पुष्पं कामयति स च प्रियात्यात्मानम् एमेए समगा सुत्ता, जे लोप संति साहुयो । विहंगमा च पुण्के, दाणभत्तेसणारया एवमेते श्रमणा मुक्ता ये लोके सन्ति साधवः । विहंगमा इव पुष्पेषु दानभक्तेपणा (यां) रताः ॥१॥ ॥१॥ ॥२॥ ॥२॥ ॥३॥ ॥३॥

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