Book Title: Jain Shiddhanta Pathmala
Author(s): Saubhagyachandra
Publisher: Ajaramar Jain Vidyashala

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Page 10
________________ पृष्ट पंक्ति अशुद्ध शुद्ध पृष्ट पंक्ति अशुद्ध शुद्ध २१२ १७५तुष्णि तुष्णिङ् १४७ १२ संसारम् संसार - १२० २२ सवेले सवेलए .णिज इव १२५ २२ शिष्य शास्य , १५ नन्तम् नन्त १२७ १० देवोवापि देवोवाऽल्प, २४ पापकर्म पापकर्म रजा १४६ ७ षणां षणा २२३ ८ विचिन्तयेत् समाचरेत, १० पलागं पुलागं , १२ चिन्तयेत् प्रेक्षेत , १६ चायें चाय १२५ १५ ज्ञात ज्ञान " २४ *भवात भवात , १९ नाना शान १४९ १२ डन्ति डन्तियथा १२६ ४ एवं एवमपि १५० ६ *णिका णिकी १२७ १६ क्षत्रिया क्षत्रिया: 1, १६ हिदि हिट्टि १२८ १५ प्रागत. पायात 1, २३ करिसि रिसि १२९ १८ महापन्न महापन्ने १५२ २० मि नमि , १९ वो वीर्यवान् श्च १५५ १२ रिसि रिसी वर्णवान् , १९ कि कि १३१ २३ पहाय प्रहाय १५६ १८ किचन किचन १३३ २३ ततो ततः स ], २२ ममि नर्मि १३९ १६ सर्वे सर्व १५७ १ प्राश्रम प्राश्रम १४१ १३ मुहो महो (१५७ १५ *दूस दुसं " २१ एव एवं १५८ २१ सल्ल सल्लं १४२ १ महिसे हिंसे १६० ९ पांडया पंडिया १४३ ११ सा यासा १६७ १४ रागेणा रोगेणा १५४ ७ भवति - १७० २१ यथा यथा स १४६ ३ सर्व सत्य १७३ १८ भूत भूत २४६ १९ श्चित् चित्कुर्वीत १७५ १५ स्थ तत्थ HEREEEEEEEEEEEEEEEEE

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