Book Title: Jain_Satyaprakash 1953 03 04
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्वदेश चैत्यपरिपाटी लेखकः-श्रीयुत भंवरलाल नाहटा, बीकानेर जैनधर्मका प्राचीन प्रचारकेन्द्र बंगाल-बिहारादि पूर्व प्रदेश हैं । पर परिस्थितिवश पश्चिम एवं दक्षिणकी ओर पीछेसे प्रचारकेन्द्र स्थापित हो गया अतः पूर्वसे जैनधर्मका एक,तरहसे सम्बन्ध विच्छेद सा हो गया । इसीलिए वहाँके श्रावक जो वर्तमान में सराक जातिके रूपमें प्रसिद्ध हैं, जैन संस्कारोंसे संस्कारित होने पर भी जैन तत्त्वज्ञान व आचारसे अनभिज्ञ हो गये हैं। प्रचारकेन्द्रके इधर सरक जाने पर भी जैन तीर्थङ्करोंकी कल्याणकभूमि उधर ही अधिक थी अतः उन तीर्थस्थलोंकी यात्राके लिए संघ जाते रहते थे। उनके प्राचीन उल्लेख तो अब प्राप्त नहीं है पर १४वौं शतीसे इन तीर्थस्थलोंके विवरण बराबर मिलते रहते हैं । आचार्य श्रीजिनप्रभसूरिजीने अपने “ विविध तीर्थकल्प " नामक ग्रन्थमें तत्कालीन सभा जैन तीर्थोकी विशद जानकारी दी हुई है । इसके बादका वैसा महत्त्वपूर्ण ज्ञातव्य ग्रन्थ तो नहीं मिलता पर समय समय पर यात्रा करनेको जो जो गये उनमें से कईयोंने रास्तेके विहारस्थलोंके निर्देश व इन तीर्थोके सम्बन्धमें आवश्यक सूचनाएं अपनी रचनाओंमें दी है । ऐसे पूर्वदेशकी चैत्यपरिपाटियोंमें खरतरगच्छीय आचार्य जिनवर्द्धनसूरिजाकी चैत्यपरिपाटी उल्लेखनीय है । सं. १४९३ की लिखित हमारे संग्रहकी विशिष्ट प्रतिमें वह लिखित मिली है जिसे मूलरूपसे "जैन सत्य प्रकाश" के गतांकमें प्रकाशित की है। १६वीं शतीकी हंससोम रचित 'पूर्वदेशचैत्यपरिपाटी' प्राचीन तीर्थमाला संग्रहमें प्रकाशित हो ही चुकी है । १७वीं शतीकी भयख रचित 'पूर्वदेशचैत्यपरिपाटी' दो वर्ष पूर्व बीकानेरके आचार्य शाखाके ज्ञानभंडारका अवलोकन करते हुए एक गुटकेमें प्राप्त हुई। जिनका ऐतिहासिक सार प्रस्तुत लेखमें दिया जा रहा है। . ____ इसी शताब्दीके 'समेतशिखर संघवर्णन रास 'का सार हम जैन सत्य प्रकाश' व. ७, अं. १०-११ में इतः पूर्व प्रकाशित कर चुके हैं और १८वीं शतीकी कई तीर्थमालाएँ ' प्राचीन तीर्थमाला ' में प्रकाशित हैं। एक अप्रकाशित ‘समेतशिखर बृहद्स्तवन' गा. १२७ कीर्तिसुंदर रचित (पूर्वदेश तीर्थमाला ) मुझे हाल ही में सीरोहीके एक गुटकेमें मिली हैं उसके प्रारंभिक पत्र १८ प्राप्त नहीं हुए एवं बीचके कई पत्र चिपक जानेसे कुछ अक्षर-अस्पष्ट हो गये हैं अतः इसकी अन्य प्रतिकी अपेक्षा है । मिल जाने पर उसका भी ऐतिहासिक सार प्रकाशित करनेका १. अंचलगच्छीय महेन्द्रसूरिकी 'तीर्थमाला' (प्राकृत ) परकी वृत्तिमें और 'उपदेश सप्ततिका में कुछ श्वे. जैनतीर्थों का परिचय मिलता है। २. विजयसागर रचित ' समेतशिखर तीर्थमाला'. जयविजय रचित 'समेतशिखर तीर्थमाला । सौभाग्यविजय रचित एवं शीलविजय रचित तीर्थमालाएं। For Private And Personal Use Only

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