Book Title: Jain_Satyaprakash 1953 03 04
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११०] શ્રી. જૈન સત્ય પ્રકાશ [ वर्ष : १८ विचार है । प्रतीक्षा करने पर यदि अन्य प्रति नहीं मिली तो प्राप्त प्रतिके आधारसे ही सार प्रकाशमें लाया जायगा। इन तीर्थमालाओं, चैत्यपरिपाटियों एवं ऐतिहासिक स्तवनोंका जैन तीथोंके इतिहास लेखनमें बडी उपयोगिता है । हमने ऐसी छोटी बड़ी अनेक रचनाऐं जहाँ कहीं भी मिली संग्रहित की है । कोई प्रकाशित करनेको तैयार हो तो संपादन किया जा सकता है। श्वेताम्बर जैन तीर्थोकी प्रधान व्यवस्थापिका पेढ़ी श्री. आणन्दजी कल्याणजीका कर्त्तव्य है कि लाखों रुपये पेढ़ीमें जमा पड़े हैं उनका कुछ उपयोग जीर्णोद्धारके साथ साथ उन तीर्थोंके प्रमाणिक इतिहास, एवं उन्होंके निर्माणकी सामग्रीके प्रकाशन, मन्दिरों व मूर्तियोंके लेखोंके संग्रह, उनके शिल्प स्थापत्यादि विशिष्ट कलाके फोटोंके संग्रह ग्रन्थ ( आल्बम ) के प्रकाशनादिमें भी खरच कर अपना कर्त्तव्य अदा करे । इसी प्रकार दिगम्बर तीर्थ रक्षा कमेटी दिगम्बर तीर्थोंके संबंधमें शोधपूर्ण संग्रह ग्रन्थ प्रकाशित करे । जिस चैत्यपरिपाटीका यहाँ सार दिया जा रहा है वह ८५ पद्योंकी है। पद्यांक ७७से अलवर सकुशल आने सकका उल्लेख कर फिर तपागच्छीय ऋषियोंको प्रणाम किया है और तदन्तर जैसलमेरके ८ चैत्योंका निर्देश है। अलवरका भैरुंशाह इसी समय तपागच्छका भक्त हो गया है अतः संभव है वही इसके रचयिता हो । उनके रचित शील सज्झायादि उपलब्ध हैं । इसके सम्बन्धमें हमारा एक लेख " ओसवाल नवयुवक" व. ७, अं. ७ में प्रकाशित हो ही चुका है ! अतः यहाँ विशेष विवरण नहीं दिया जा रहा है । दिगंबर साहित्यमें श्वेतांबर साहित्यकी अपेक्षा ऐतिहासिक साहित्यकी कमी है। तीयोंके इतिहासके साधन तो उनके और भी स्वल्प है। 'निर्वाणभक्ति ' नामक कुछ रचनायें प्रात हैं जिनमें तीर्थोके नामादिका उल्लेख तो मिलता है पर विशिष्ट इतिवृत्त नहीं । दिगंबर पट्टावलियां एवं निर्वाणभक्ति संज्ञक जितनी भी ऐतिहासिक रचनाएं प्राप्त हो, संग्रह कर प्रकाशित करनी आवश्यक है । भारतीय ज्ञानपीठ-बनारससे एक ऐसा संग्रह ग्रंथ पं. भुजबली शास्त्री द्वारा संपादित प्रकाशित होनेवाला ज्ञात हुआ है, जिनकी प्रतीक्षा लग रही है। उसके अतिरिक्त जो भी सामग्री प्राप्त है, प्रकाशित करनेका दिगंबर विद्वानोंको अनुरोध है । भयख रचित पूर्वदेश चैत्यपरिपाटीका ऐतिहासिक सार श्री मेडता नगरके पार्श्वनाथ, शान्तिनाथ पार्श्व और नमिप्रभुको वंदन कर फलवधि पार्श्वनाथ तोर्थ आये, वहांसे डीडू, फतहपुर, झूझगुं, नहरड़, सिंघाणा नारनौल, बरड़ोदि, बेरोजिके चैत्योंकी वन्दना कर अलवरमें श्रीरावण पार्श्वनाथ, आदिनाथ, शान्ति और पार्श्वप्रभुके आठ प्रसादीके दर्शन कर कुल्ल आये, जहां तीन शिखरबद्ध प्रासाद थे यहाँसे पूर्वदेशकी कल्याणकभूमिकी तीर्थयात्राके हेतु चले । अब्राहमपुर, सिकंदराबाद, बयानाकी यात्रा कर मथुरा For Private And Personal Use Only

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