Book Title: Jain_Satyaprakash 1953 03 04
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ 6-3 : & fre પૂર્વ દેશ ચૈત્યપરિપાટી [११ तीर्थ पहुंचे यहां ऋषभदेव के दो जिनालय और प्रभवस्वामीके स्तूपके दर्शन हुए। अनुक्रमसे आगरा और फिर ३२ कोशकी दूरी पर चंदवाड़िमें चन्द्रप्रभ, वहांसे २ कोश अभयपुरी में " खमणावसही " में नमन कर ८ कोश फतहपुरके प्रासादोंकी वन्दना की। वहांसे रिपड़ी आये जहां २ कोस पर खमणावसही थी, वहांसे ५ कोस नेमिनाथस्वामी की जन्मभूमि सौरीपुर स्थित आठ जिनालयों के दर्शन किये। फिर १० कोस स्थित जसराणाके चैत्यको जुहार कर ३ कोस पर नेमिप्रभुको नमन कर ७ कोस दूर सकीट गांव में " खमणाव सही" को वंदना की । वहां से सात कोस किरोड़ानगर फिर भूयग्राम में “ खमणावसहीं " में जिनवंदन किया जो कि सात कोस दूर थी । वहांसे तुरत १६ कोस चल कर कम्पिलपुर आये जो कि विमलनाथ तीर्थंकर की जन्मभूमि है । सती द्रौपदीका पोहर यहीं था, केसरीवन में गर्दभिल्ल गुरुके पास राजा संयंती व्रतधारी हुआ था । कम्पिलपुरसे तीन कोस सिकंदरपुर में छीपावसही फिर पानवाड़ीके चैत्य और भुजपरि (?) की अनुक्रमसे वन्दना की । सेरगढ़ पधार कर एक जिनालय में बहुत से जिनबिंबोंको नमस्कार किया । . 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वहांसे गंगा पार उतर कर लखाणूंके जिनेश्वरका १ चैव्य था, चंदन कर, दरिआबाद में " खमणावसही " भेट कर, रतनपुरी तीर्थमें आये जहां धर्मनाथकी जन्मभूमि है और मन्दिर में प्रभपादुकाओंके दर्शन कर सात कोस पर अयोध्या तीर्थ आये। यहां ऋषभदेव, अजितनाथ अभिनंदन, सुमतिनाथ और अनंतनाथ भगवानकी जन्मभूमि है। अयोध्याजीसे बत्तीस कोस सावत्थी नगरी है यहां तीसरे तीर्थंकरको जन्मभूमि हैं पार्श्वापत्य केशी स्वामीसे गणधर गौतम यहीं मिले और मतभेद मिटाया। भगवान महावीरके श्रमणोपासक संख और पुक्खली भी यहीं हुए हैं। यहांसे लौटते हुए २० कोस पर सोढलपुर में दो जिनगृहों की वन्दना की फिर २० योजन पर स्थित जोवणपुर (जौनपुर) में श्रीपार्श्वनाथ प्रभुको नमन कर जन्ममरणका भय मिटाया। यहांसे १५ कोस चन्द्रावतीमें चन्द्रप्रभस्वामीकी चरणपादुकाओंके दर्शन किये। चन्द्रावतीसे सिंहपुरी ६ कोस है जहां श्रीश्रेयांसनाथ तीर्थंकर की चरण वंदना की । बनारस नगर में पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथ जिनेश्वरकी जन्मभूमिमें चैत्यवंदना कर गंगा नदी पार होकर मगध जनपद में प्रवेश किया। सहसाराम में खमणावसही थी फिर सोवन ( सोनभद्रा ) नदी पार होकर झाड़के खंड ( झारखंड ? ) में २ चैत्योंकी वंदना की, भद्दिलपुरमें श्रीशीतलनाथकी जन्मभूमि की स्पर्शना कर भीलके राज्य गुंजा नामक ग्राम आये । गिरिराजकी तहटिका में वंदनाकी इच्छा की फिर रामपुर में गरम पानीके कुण्ड देख कर आगे चले । समेतशिखरकी तलहटिका में भील पल्लीपति गुंजराजके गांव पालइ (पालगंज ) में आकर जन्म सफल किया । For Private And Personal Use Only

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