Book Title: Jain_Satyaprakash 1953 03 04
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जात्यन्ध पुरुषों द्वारा हस्तिस्वरूपके वर्णनवाला दृष्टान्त क्या बौद्ध-ग्रंथसे लिया गया है ? लेखकः-श्रीयुत अगरचन्दजी नाहटा, बीकानेर एक ही वस्तुको भिन्न भिन्न सापेक्ष दृष्टिकोणोंसे देखने व जाननेकी प्रणाली स्याद्वाद व अनेकान्त है । और एक ही दृष्टिकोणसे वस्तु स्वरूपका आग्रहपूर्वक अवलोकन या मान्यता एकान्तवाद व मिथ्यात्व है। इस बातको सरलतासे हृदयंगम करनेके लिये जैन ग्रंथोंमें अनेक दृष्टान्त दिये हुए मिलते हैं। उनमेंसे जात्यंध पुरुषों द्वारा निर्णीत हस्तिके एक एक अंगके स्पर्श द्वारा निर्णीत विभिन्न मान्यताओंकी अयुक्ततावाला दृष्टान्त भी एक है, जिसे अनेक ग्रंथों में दिया गया है और अनेक वाद भाषणो, लेखों आदिमें बतलाया जाता है। यह दृष्टान्त मूल तो कितना प्राचीन है, सबसे प्राचीन किस जैन ग्रंथमें लिखा मिलता है-यह मुझे पता नहीं। पर अभी अभी श्रीभरतसिंह उपाध्यायके 'पाली साहित्यका इतिहास' पढ़ने पर यह प्रथम वार मालूम हुआ कि यह बौद्ध-साहित्यके प्राचीन 'उदान' नामक ग्रंथके ठे वर्गमें वर्णित है। इस वर्गका नाम ही 'जचंध वग्ग' अर्थात् जात्यंध वर्ग है। श्रीभरतसिंह उपाध्यायने विश्वका धार्मिक साहित्य इस दृष्टान्तके लिये बौद्ध साहित्यका ऋणी है-लिखा है। इसलिये जैन साहित्यमें यह कबसे प्रविष्ट हुआ यह जाननेकी सहज इच्छा हुई और वह जिज्ञासा इस लेखके द्वारा विद्वानोंके सम्मुख रख रहा हूं। आशा है पं. सुखलालजी, दलसुखभाई, मुनि जंबुविजयजी, आचार्य विजयदर्शनसूरि आदि जैन-न्याय और दर्शनके प्रकाण्ड विद्वद्गण इस समस्याका सन्तोषजनक समाधान शीघ्र ही प्रकाशित करेंगे। ___ वैसे तो एक दूसरे धर्म-सम्प्रदाय परस्परमें समय समय पर कुछ बातें लेते देते रहते हैं। और अच्छी बातको अपनानेमें संकोच होना भी नहीं चाहिये । हमें अपने विरोधी सम्प्रदायसे भी कोई हितकी बात मिल सकती हो तो ग्रहण करने में सदा तत्पर रहना चाहिये । जैन और बौद्ध तो परस्परमें बहुत ही मिलते जुलते धर्म हैं। भगवान् महावीर और बुद्ध दोनों समकालीन महापुरुष थे । अहिंसाका प्रचार, यज्ञ एवं बलिप्रथा आदि हिंसात्मक कार्योका विरोध, जातिवादका खंडन, ईश्वरके ऐकाधिपत्य एवं सृष्टिकर्ताकी अमान्यता आदि अनेक बातें परस्परमें बहुत ही सादृश्य रखती हैं। अनेक बौद्ध कथाएं एवं दृष्टान्त यावत् कुछ धार्मिक सिद्धान्तोकी प्रतिपादक गाथाएं भी साधारण हेरफेरके साथ दोनों धौके साहित्यमें समानरूपसे मिलती हैं। परवर्ती जैन ग्रंथों में विशेष रूपसे प्रचारित मैत्री, कारुण्य, प्रमोद और माध्यस्थ्यइन चार भावनाओंको भी बौद्ध ग्रंथोंसे अपनाई प्रतीत होती हैं। दोनों धर्मोंके प्राचीन For Private And Personal Use Only

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