Book Title: Jain_Satyaprakash 1944 06
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन विद्वान ध्यान दें AR [ वर्तमान इतिहासकी अधिकांश पाठ्य पुस्तकों में भगवान महावीर व जैनधर्मके सम्बन्धमें भ्रमपूर्ण प्रचार ]. __ निवेदक-श्रीयुत मानमलजी सीपाणी, लश्कर (ग्वालीयर). मुझे जैन विद्वानोंका ध्यान इस ओर आकर्षित करते हुए अत्यन्त खेद होता है कि इस समय विद्यार्थियोंके लिये इतिहासकी जो पाठ्य पुस्तकें शिक्षालयोंमें प्रचलित हैं उनके तरफ हमारा लक्ष्य शुन्य मात्र सा है। इन इतिहासकी पुस्तकोंमें जैनधर्म व भगवान महावीरके जीवन पर जिस प्रकार प्रकाश डाला जा रहा है उस पर जैन समाजके विद्वानोंने यदि ध्यान नहीं दिया तो, मैं विश्वास पूर्वक कहनेको तैयार हुँ कि आगामी ५० वर्षों में, यही साहित्य जैनधर्म व जैन समाजके लिये अत्यन्त घातक व अहितकर सिद्ध होगा। इन अधिकांश पुस्तकों में जो कुछ भी जैनधर्म व भगवान महावीरके सम्बन्धमें लिखा गया है या लिखा जा रहा है वह अधिक अंशमें कपोलकल्पित है, सत्यताका गला घोंटा गया है। मैं इन लेखकोंका दोष इस लिये नहीं निकालता कि उनमेंसे अधिकांश लेखक अजैन हैं; उन्होंने अजैन होनेके नाते जैन साहित्यका अध्ययन न करते हुए इधर उधरकी साधारण पुस्तकोंके आधार पर अथवा कही सुनी प्रचलित किंवदंतियों पर, जो सामग्री सही या गलत मिल पाई उसे ही उन्होंने अपनी पुस्तकों में संगृहीत कर दिया । ऐसी पुस्तकें गत कई वर्षोंसे इतिहास पर लिखी जा रही हैं और उनमें अधिकांश लेखकों द्वारा इसी तरह अनर्गल उगला जा रहा है, परन्तु जैन विद्वानोंने आज तक इस ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि ऐसे साहित्यकी रोक होनेके स्थान पर वृद्धि होती जा रही है । और यदि अब भी इसका पूर्ण रूपेण विरोध नहीं किया गया तो भविध्यमें यह सब साहित्य सत्य प्रमाणित होकर जैनधर्मके असली स्वरूप पर ऐसा कुठाराघात करेगा जिसके प्रहारसे जैनधर्मकी भारी क्षति अवश्यंभावी है। बन्धुओं! क्या आप यह नहीं सोचते कि हमारी समाजके होनहार बच्चोंको जव जैनधर्म व भगवान महावीरके संबंध विद्यालयों में ऐसा साहित्य पढनेको मिलता है तो उनके कोमल मस्तिष्कों पर क्या प्रभाव पडता होगा? अस्तु! में अपने इस आलोचनात्मक लेखको अधिक न बढाकर जैन विद्वानोंका ध्यान श्रीयुत रामकृष्ण माथुर एम. ए. द्वारा लिखित भारतवर्षके इतिहासके छठवें अध्याय पर आकर्षित करता हुँ । माथुर सा. इतिहासके एम. ए. तो अवश्य होंगे ही, परन्तु सत्यको खोज करनेकी आपने तनिक भी परवा नहीं की। प्रस्तुत पस्तकके पृष्ठ नं. ४२ के प्रथम पेरेग्राफसे ही आपने कल्पित बातें लिखना आरंभ किया है । आप लिखते हैं कि “प्रथम आन्दोलन जैन धर्मके स्वरूपमें प्रकट होरहा था. जिसके संस्थापक गौतमकी भांति क्षत्रिय वंशके राजकुमार mero DAANDA For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36