Book Title: Jain Satyaprakash 1935 11 SrNo 05
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षाभ्रमाविष्करण [ याने दिगम्बरमतानुयायी अजितकुमार शास्त्रीए " श्वेताम्बरमतसमीक्षा "मां ___ आळेखेल प्रश्ननो प्रत्युत्तर ] लेखक- उपाध्याय श्रीमद् लावावजयजी महाराज (गतांकथी चाल ) क्या साधु चर्मका उपयोग भी करे ? आ चालता प्रश्नना संबन्धमां " कांइक सविस्तर संयमर्नु स्वरूप, तेमां पण चर्मपञ्चकनं * स्वरूप, उत्सर्ग अने अपवादमार्गनी व्यवस्थानु दिग्दर्शन तथा लेखके उछाळेला गप्पगोळानो * नमुनो विगेरे अमो जे उपर बतावी आव्या तेना उपरथी अमुक अंशे आ प्रश्ननो उकेल आवी * जाय छे, छतां पण विशेष प्रकाश पाडवा माटे हवे अमो सविस्तर जवाब आपीशुं ।-लेखक* *-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-* आ प्रश्ननी बाबतमा लेखके जे लेख २. जेमां हिंसा थयेली होय ते वस्त लखेल छे तेनी तमाम पंक्तिपर विचार राखवाथी हिंसानो दोष लागे छ । नहि करतां, लेखके आखा लेखना जे आबे बाबतमा प्रथम, पहेली बाबतने भव सारांशो तारव्या छे ते सारांशनो माटे लेखकने पुछवामां आवे छे के त्रस आपणे सारांश विचारीए के जेनी अंदर जीवनी हिंसाथी ज चामडं प्राप्त थाय छे, आ चालता प्रश्ननो उत्तर पण गतार्थ एम जे सूचववामां आव्युं तेनो शो अर्थ ? थइ जाय । जे जोवनुं चामडुं छे तेनी हिंसाथी के सारांश-१. चमडा रखनेसे साधुको बोजा त्रस जीवनो हिंसाथी ? जे जीवन हिंसाका दोष लगेगा क्यों कि चमडा चामडं छे तेनो हिंसाथी एम जो कहेता प्रस जीवकी हिंसासे ही प्राप्त होता हो तो तो स्पष्ट ज कही दोने के पश्चेन्द्रिय है। आमांथी नीचे प्रमाणे बे बाबतो जीवनी हिंसाथी प्राप्त थाय के एटले के स्पष्ट तरी आवे छे। पञ्चेन्द्रिय ढोर विगेरेने मारी नांखवाथी १. चामडं त्रस जीवनी हिसाथी ज ज प्राप्त थाय छे । प्राप्त थाय छे, ते सिवाय नहि । हवे आ बाबतमा लेखकने पुछवामां For Private And Personal Use Only

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