Book Title: Jain Satyaprakash 1935 11 SrNo 05
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री सत्य Man संवत् १६८० विक्रममें आगरा (जैन हितैषी, वर्ष ८, ९ । जैन शहरक लघुशाखीय श्रीमाल खरतर श्वेताम्बर कोन्फरन्सहेरल्ड वर्ष ११ का मतानुयायी बनारसीदासने " तेरह पंथ " चलाया। इतिहास - साहित्यअंक । युक्तिप्रबोध वगैरह) जो दिगम्बरजैन तेरहपंथमें शरिक न हुए, वे सभी “बीसपंथी" के जो जिनागम-प्रमाण है, जो जिनामसे प्रसिद्ध हुए। ३२ नागमकी अविच्छिन्न परंपराका धारक संवत् १८१८ विक्रमके बाद पं० है, जो जैनत्वकी प्राचीन जड है, उस गुमानीरामने “ गुमानपंथ " चलाया। जैनसमाजका नाम ह श्री संघ ( श्वेतादिगम्बरसंघमें आज पंडितपार्टी म्बर संघ)। श्वेताम्बर संघ एकांतऔर बाबूपार्टी की जोशीली खिंचाखिंच आग्रहवादो न था-न है ॥ हो रही है। (क्रमशः) जीन थीम २७ " ON माहिर "नी, पून्य | મુનિરાજ શ્રીદર્શનવિજયજી મહારાજન, લેખ આ અંકમાં સ્થળસ કેચના કારણે લઈ શકાયો નથી ३२ श्री सोमप्रभसूरिजीने " सिन्दूर प्रकर" में २० विधिद्वार फरमाये है । वोशपन्थी जैन उन सभीको प्रमाण मानते हैं, तेरहपन्थो जैन उनमें से तेरह को मानते हैं॥ For Private And Personal Use Only

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