Book Title: Jain Satyaprakash 1935 08 SrNo 02
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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श्री जिन-षट्पदी गीतम्
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भविक जन भज जिनवरचरणं, नखशशिविभाविभूषितपरिकर-सहितसमवसरणम् भविकजन स्कुरद्वोधवैभववाधितजन-कृतसमुचितशरणम् निजसमक्षशंकासंकुलजन-कृतशंकाहरणम् भ०१ चतुःषष्ठिसपरिकरमुराधिप-विरचितवरवरणम् मधुरमहोदयलाभलसितजन-पुंगवपरमधनम् भ० आगमनिगमवेदिबुधपुंगव-गणधरगीतगुणम् समुचितसविधिसुभगसेवकजन-बोधिदाननिपुणम् भ० ३ व्यन्तररचितकनकमयकोमल--कमलकृताक्रमणम् निजदर्शनबाधितसेवकजन-भाविभवभ्रमणम् भ०४ स्वस्तिकचक्रप्रभृतिरेखागण-लसितममलमरुणम् प्राणिमात्रप्रतिबोधदक्षमति-कलितमहाकरुणम् मंगलमूलमभितनतिमूलं सर्वसिद्धिसदनम् वर्षानन्दविहितहितगीतं कुरुकण्ठाभरणम्
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भ०५
६
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