Book Title: Jain Satyaprakash 1935 08 SrNo 02
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७ -सा ही है । " इसीसे भी साफ है हम यहां यह उल्लेख करना चा. कि-आगों के चार अनुयोग-विभाग हतो हैं कि दिगम्बर लेखकोने नया होने के बाद यानी आर्यरक्षितमूरि के साहित्य बनाने की धृनमें इन दोनों भद्रबाद श्वेताम्बर दिगम्बरके भेद हुये हैं। बाहु स्वामीके चरित्रमें कीतनी गडबड ___दिगम्बर ग्रन्थोमें लिखा है कि- घूसा दी हैं । भद्रबाहुस्वामीके समयमें बारह वर्षोंका १ श्रवण बेलगोल शिलालेख नं० अकाल गिरा, बादमें कितनेक साधुने १ जो सभीसे प्राचिन है-में लिखा संयमपालन में शिथिल बनकर श्वेताम्बर है कि-अष्टांग निमित्त वेदी (द्वितीय) मत चलाया। भद्रबाहुस्वामीने उज्जेनमें १२ वर्षातक भट्टारक रत्ननंदीने भद्रबाहुचरित्र अकाल होनेका बताया । इसिसे संघ बनाकर उसमें श्वेताम्बर मतकी मनमानी दक्षिणकी ओर गया । उनमें से आचार्य उत्पत्ति लिख दी है साथ साथमें प्रभाचंद्रने एक शिष्यकी साथ यहां आ भरपेट श्वेताम्बर मतकी निंदा की कर समाधि ली। है, बादके लेखकोने तो करीब करीब २ बृहत् कथाकोश ( रचना वि. भ० रत्ननंहीके कथनको ही पुष्ट किया सं. ९३२) में पाठ है कि-भद्रबाहुस्वामी है। मगर उन्होंने शोचना चाहिये कि की पासमें उज्जैनपति चंद्रगुप्तने जैन -इसके लेखक भट्टारक यानि साधु दीक्षा लो, जिसका नाम रक्खा गया मार्गसे भ्रष्ट दिगम्बर-आचार्य हैं, न विशाखाचार्य । भद्रबाहुस्वामीने बारह कि विश्वस्य त्यागि मुनि । अलावा उस वोके अकालमें भाद्रपद देशमें समाधि चरित्रमें इतिहासका भी भारी खून ली । उसी समय विशाखाचार्य संघको किया गया है. मगर विद्वानोंको स्वार्थ पुन्नाटकी ओर ले गये, ओर रामिल्ल के नकली प्रकाशमें हृदयचक्षु बंध होने स्थूलवृद्ध व भद्राचार्य सिन्धुकी ओर से यह विवेक भी विनष्ट हो जाता है। चले गये। १६ पू० श्रीसागारनंदसूरजी तो स-प्रमाण मानते हैं कि-श्रीवज्रस्वामीके बाद २५ वे वर्ष दिगम्बर मत की उत्पत्ति हुइ है, ईसिसे दिगम्बर ग्रन्थोमें उपचरित-कथन होने का भी अधिक संभव है. माने वज्रस्वामीको ही द्वितोय भद्रबाहुस्वामी लिख दिया हो तो कोइ आश्चर्य नहीं । संभव है कि-श्रीवत्रस्वामी श्रीभद्रगुप्तमूरिजीके पास पढे हैं इसिसे ज्ञान-दायक आचार्य के नाम के एकपद " भद्र" से ही वे ख्यात बने हो । For Private And Personal Use Only

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