Book Title: Jain Satyaprakash 1935 08 SrNo 02
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ ३ भट्टारक रत्ननंदीने बृहत् कथा- यात्राके निमिन आए हुए राजा चंद्रकोशके पाठको उठाया है, बादमें अपने गुप्तने उनकी पास दीक्षा ली ओर स्वदिमाग से कल्पना करके जोड दिया है निर्मित मंदिरमें जिनेन्द्रदेव ओर भद्रकि-भद्रबाहु स्वामीने १२००० सा- वाहुस्वामीकी भक्ति-उपासना की। धुओंको साथ में लेकर कर्णाटक की दक्षिणाचार्य चंद्रगुप्तमुनि को अपने पद ओर विहार किया, विशाखाचार्यको पर बैठा कर स्वर्गमें जा पधारे। संघको साथ भेजा, चंद्रगुप्तको अपनी ५ देवचंद्र विरचित राजावली में पास रक्खा ओर समाधिका स्वीकार भट्टारक रत्ननंदी के भद्रवाह चरित्रका किया । स्थूलभद्र व स्थलाचार्यको सि- ही अनुकरण है । भिन्नता इतनी ही है न्धमें भेज दियें । विशाखाचार्यजी बाद कि-चंद्रगुप्त पालिपुत्रका राजा था, में दक्षिणसे लोटकर पुनः कन्नोज की उसको सिंहसेन नामका लडका था, ओर पधारें। चंद्रगुप्तका भद्रबाहु स्वोमीके साथही पहाडी पर स्वर्ग-गमन हुआ। ४ चिदानन्दकृत कनडी-मुनि ६. सद्गत डो० फ्लोट साहब वंशाभ्युदय में लिखा है कि-एक चि- शिलालेख नं. १ में उत्किर्ण द्वितीय त्ताने श्रुतकेवली भद्रबाहुस्वामीको बेल- भद्रबाहुके नांमसे प्रथम भद्रबाहुस्वामी गोलके पहाडपर मार डाला, वहां लो. की श्रवणबेलगोल पर जाने की कथाको गोने उनकी चरणों की प्रतिष्टा की। सीर्फ कल्पना ही मानते हैं। इसके बादमें दक्षिणाचार्यजी आ०अर्हबलीकी अलावा मौर्य चंद्रगुप्त एवं गुप्तगुप्तिको आज्ञासे बेलगोल पर पधारे, तत्पश्चात् भी भिन्न भिन्न व्यक्तिरूप मानते हैं।" १७ पू० श्री सागरानन्दसूरिजी का मत है कि-दिगम्बर इतिहासमें औपचारिक कथन अधिक मात्रा में है । देखिए-वनस्वामीजी श्रीभदगुप्तसूरिके पास पढते थे. अतः आचार्यके नामके एक-पदसे वज्रस्वामी का भी नाम रख दिया “ भद्र" ( भद्रबाहु ) । रथवीरपुरका राजा, जिसका नाम होगा चन्द्र, वज्रस्वामीके भक्त थे, उत्तर मथुरा और दक्षिण मथुरा उसके अधिनमें थी, उसको प्रधान बना कर चंद्रचंद्रगुप्त की घटना खडी कर दी है । भगवान् महावीरस्वामीके समयमें राजगृही श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहु के समयमें पाटलिपुत्र और श्रीआर्यहरितसूरिके बादमें उज्जयनी केन्द्र नगर थे, मगर दिगम्बर ग्रन्थकारोने द्वितीय भद्रबाहुके समयमें उज्जयनीके स्थानमें पाटलिपुत्र का वर्णन लिख दिया है। For Private And Personal Use Only

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