Book Title: Jain Satyaprakash 1935 08 SrNo 02
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आज दिगम्बर सम्प्रदायमें भी श्वेताम्बर शास्त्रों के अनुसार सं० प्रत्याख्यान-पच्चक्खाण के जरिए ६०९ वीरनिर्वाण ओर दिगम्बर ग्रन्थो षड्-आवश्यक में विचारभेद है । १५ के अनुसार सं. ६०६ में श्वेताम्बर संवत् ६०९ वीरनिर्वाण, सं. १०९ दिगम्बररूप संघभेद हुआ।" विक्रममें कृष्णआचार्यके शिष्य शिव- श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनेांके भूतिसे बोटिकमत (दिगम्बरमत ) साहित्यमें दशपूर्व ज्ञानवाले आचार्योंकी चला । " (आवश्यक नियुक्ति भाष्य ग्रन्थरचनाको प्रमाणिक आगम-आप्तागम गाथा १४५ से १४८) ओर बडा संघ मानना, बारह वर्षोंके अकालको दूहभेद पडा, कि जो आज मी भिन्न भिन्न राना, "एवं चार अनुयोगोंको विभक्त रूपसे मोजूद है। करना, इन सभी प्रकार के इतिहास एक १२ मूलाचार के षडावश्यक-अधिकारमें सामायिक चतुर्विंशतिस्तव, वंदनक, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग व प्रत्याख्यानको आवश्यक माने हैं । त्रिवर्णाचार अ० १२ श्लोक ३६ में स्वाध्यायको ही छठा आवश्यक बतलाया है। ब्रह्म हेमचन्द्रकृत तस्कंध गाथा ६१ में वेणइय व किदिकम्म को पांचवा व छठा आवश्यक लिखा है। १३ बोटिक माने नंगा । जैसे कि-बोडियु माथु-नंगा शिर, अबोटियु-नंगेको ढांकनेवाला वस्त्र धोती। १४ देवसेनसूरि विक्रमको सोलवीं शताब्दिमें हुए, जिसने भावसंग्रह ओर दर्शनसार बनाये हैं । दर्शनसारमें लूंकामत पर्यन्त गच्छ-मतांका जिक्र किया है । १५ प्रथम भद्रबाहुस्वामीके समयमें वारहवर्षों का पहेला अकाल पडा । श्रीवज्रस्वामी यानी द्वितीय भद्रबाहुस्वामी के समयमें विक्रमकी दूसरी शताब्दीके प्रारम्भमें दूसरा अकाल गिरा और विक्रमकी पांचवीं शताब्दीमें भारतमें तिसरा अकाल गिरा । द्वितीय भद्रबाहुस्वामी दि० आदिपुराणमें महायशा भद्रबाहु, उत्तरपुराण हरिवंशपुराण सूअखंधो व त्रैलोक्यप्रज्ञप्ति गाथा ८० में यशोबाहु और श्रुतावतारमें जयबाहुकी संज्ञासे उल्लिखित है । न मालम, इनमें कोन असली नाम है, और कोन नकलो नाम ( उपनाम ) है । इसके अलावा हरिवंशपुराणमें तो स्वयं वज्रसूरिको ही स्तुति पाई जाती है। For Private And Personal Use Only

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