Book Title: Jain Satyaprakash 1935 08 SrNo 02
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ वे ईस प्रकार श्रमण वस्त्रधारी थे, आजीवक-श्रमण १-कृष्णाभिजाति-क्रूर आदमी नंगे रहते थे। (कृष्णलेश्यावाले )। (एनसाइक्लोपीडिया अॅफ रीली२-जीलाभिजाति-भिक्षु, बौद्ध भिक्षु। जीयन एन्ड एथिक्स वो०१ पृ० २५९) ३-लोहित्याभिजाति-निर्ग्रन्थ साधु, भगवान् महावीरस्वामीके निर्माजो नियततया लंगोटको पहेनते है । णसे पहिले १६-१७ वे वर्ष में गोशा४-हरिद्राभिजाति-सर्ववरू त्यागी, लकी मृत्यु हुई । उसने अतिम समय -आजीवक गृहस्थ । में अपने शिष्यों को कहा कि-" सच्चे ५-शुक्लाभिजाति-आजीवक श्र- तीर्थकर श्रमण भगवान् महावीर है, मण, श्रमणा। आप सभी उनके शरणमें जाओ ओर ६-परमशुक्लाभिजाति-आजीवक आत्मकल्याण करो"। बस ! अपने धर्माचार्थ, नंदवत्स, किस संकिच्च, धर्माचार्यकी आज्ञा हुइ, अब क्या रहा? मक्खलो गोसाल वगेरह। कइ सरल आजीवक श्रमणो भगवान् इस अभिजाति-वर्गों का सारांश महाबोर स्वामीकी आज्ञामें आ बसे, यह है कि-जो अधिक वस्त्रवाले हैं वे ओर श्रमण भगवान् महावारस्वामी के प्रथम पायरी पर बैठे हैं, अल्पवस्त्र- श्रमणसंघर्म मिल गये। (विवाहप्रज्ञप्ति) वाले बीचमें खड़े हैं, और तद्दन नंगे इस परिस्थितिके पश्चात् ए० एफ० आदमी छठी पायरीपर जा पहुंचे हैं। आर० होअनले वहांतक लिखते है कि उपर लिखित क्रमसे बौद्धश्मण यह आगंतुक श्रमण वर्ग जनसंघमें मिदूसरी कक्षामें, निर्ग्रन्थश्रमण तिसरीमें लनेपर भी नंगे रहे। कितनेक वर्षाऔर आजीवकश्रमण पांचमी कक्षामें पर्यन्त उन दोनों समूहमें अच्छा मेलजोल उपस्थित है । साफ बात है कि-निर्गन्थ रहा । कोइ वस्त्रोंको पहिने, कोइ नंगे ८ लोहिताभिजाति नाम " निग्गंत्था-एकसाटिका " ति वदन्ति । (दि. बाबू कामताप्रसादजी कृत " महावीर ओर बौद्ध ) ९ किसी दिगम्बर ग्रन्थमें गोशालके निर्वाण समयको हो "महावीर निर्वाण" समय मान लिया है, एवं इतिहासमें भ्रम फेला रवखा है । इसिसे कोई कोई विद्वान् प्रचलित महावीर निर्वाण संवत्में १७-१८ वर्ष बढाने को कहते है । For Private And Personal Use Only

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