Book Title: Jain Satyaprakash 1935 08 SrNo 02
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ बेहदं छे. उत्सर्गमां अपवाद सिवाय सांभब्यु के देण्यु नथी के जैन मुनिओ चाली शकतुं नथी. तेने सुचवनार एक वृक्षनी शाखाने भडकी शके, अने अमुक मननीय दृष्टान्त नीचे मुजब छे. शास्त्रमा तो अटकवानुं लख्युं छे. अहो! कोइ भावितात्मा अणगार शास्त्रकारे केवळ गप्पा मार्या छे. आq पर्वतनी खीणना उपरना भागमां बोलनार खरेखर मूर्खशिरोमणि के एम घणी सांकडी केडी हती ते मार्गे चाल्या सहु कोइने कहे, पडशे, तेवी रीते आ जाय छे. सामेथी कोइ माणस सिंहना छत्रना प्रश्नमां पण तेवीज स्थिति छे. भयथी तेज केडीए उतावळो चाल्यो आवे देवानांप्रिय लेखक ! शुंठने गांगडे छे. मुनिनी पासे आवां खीण तरफ गांधी न बनी शकाय, जैन केडी ढळतो होवाने लइने तेमो पग शास्त्रकारनी रचनाशैली समझो. शुं खसी गयो, अने खीणमां पडता एवा ते आ विधिसूत्र छे ? अथवा उद्यमसूत्र माणसे मुनिनो पगने पकडी लीधो अने छ ? अथवा वर्णकसूत्र छ ? अथवा भयपगे लटको पड्यो. हवे मुनिनी पासे एक सूत्र छे! अथवा उत्सर्गसूत्र छ ? अथवा झाडनो डाळी लटकती छे ते जो मुनि अपवादसूत्र छ ? अथवा तदुभयसूत्र छ ? पकडी ले तो पोतानो बचाव थइ शके तदुभयसूत्रमा पण चतुर्भङ्गी समझो, के तेम छ; अने न पकडे तो पोते नीचे शुं उत्सर्गापवादसूत्र छे ? अथवा अपपडी जाय तेम छे. नोचना भागमां पण वादोत्सर्गसूत्र छ ? अथवा उत्सगोत्सर्ग पुष्कळ पाणी अने वनस्पति छे. आ बधुं सूत्र छ ? अथवा अपवादापवादसूत्र के ? मुनिनी दृष्टिमां छे. हवे अहिंयां मुनिए अथवा तो शुं आ संज्ञासूत्र छे! अथवा शुं कर ? एक बाजु शाखानो संघहो कारकसूत्र छ ? के प्रकरणसूत्र छ ? छे, तो बीजी बाजु आत्मघात, अवलम्बेल तथा उत्सर्ग अने अपवाद कया स्थाने पुरुषनो घात, जलसंधट्टो तथा वनस्पति कल्याणकारी अने बलवान छे! अने कया विगेरेनो संघटो छे, आ बेमांथो एकमां स्थाने अकल्याणकारी अने दुर्बल छे ! तो जरुर तेमने उतर पडे तेम छे. आवा अथवा " येनाप्राप्ते." ए वचनानुसारे प्रसंगने अंगे बुद्धिमानोने कहे पडशे उत्सर्ग अने अपवादशास्त्रना बाध्यबाधक के अधिक दोषना बचावनी खातर भावनी व्यवस्था जाणवी जोईए के बाशाखा पकडवी ते वधारे उचित जणाय ध्यतानुं बीज शुं! छे. आया प्रसंगमां "मुनिए वनस्पतिने अडकवू नहि प एकान्त वाक्य धारण करनार मुनि अधिक दोषना भागी न बने तेनी खातर सूत्ररचनानी शैलीने (अपूर्ण.) अनुसारे कदाच एम कहेवामां आवे के कारण विशेषे शाखाने बनती जयणाए अटकवु ' आवु वाक्य सांभळीने अनुपासितगुरुकुल पूर्वापरानुसंधानविकल कोई व्यक्ति कदाच एम कहे के अमे For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36