Book Title: Jain Sahitya ma Gujarat
Author(s): Bhogilal J Sandesara
Publisher: Gujarat Vidyasabha
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सरस्वावी शकाय. जैन तेम ज बौद्ध साहित्यमां बीजां अनेक उद्यानोना उल्लेख छे.
उत्सवो: उद्यानोनी साथे उत्सवो पण संकळायेला हता. 'संखडि' एटले उजाणी, आनंदपुरना लोको शरदऋतुमां प्राचीन वाहिनी सरस्वती ना किनारे जई संखडि करता ( पृ. १९) प्रभासतीर्थमां अने अर्बुद पर्वत उपर यात्रामां संखडि थती ( पू. १५, १०६ ). मथुरामां भंडीर यक्षनी यात्रामां लोको गाडां जोडीने जता ( पृ. ३३, ११९ ). कुंडलमेंठ नामे व्यंतरनी यात्रामा भरुकच्छना लोको संखडि करता (पृ. ४४, ११०-११ ). लाटदेशमां गिरियज्ञ अथवा मत्तवाल - संखडि नामे उत्सव थतो ( पृ. १६१ ) एनुं बीजुं नाम भूमिदाह हतुं. ए उत्सवनुं वर्णन मळतुं नथी, पण कोकणादि देशोमां गिरियज्ञ नामे उत्सव दररोज संध्याकाळे थतो होवानो उल्लेख अन्यत्र छे (पृ. ५३ ), ते ए ज हशे एवं अनुमान थाय छे. महाराष्ट्रमां भादवा सुद पडवाने दिवसे श्रमणपूजानो उत्सव थतो, एमां लोको साधुओने वहोरावीने अमना उपवासनुं पारणं करता ( पृ. १३५ ) : उज्जयिनी, माहेश्वरी, श्रीमाल वगैरे नगरोना लोको उत्सवप्रसंगोप एकत्र थईने मदिरापान करता. ए मदिरापान करनाराओमां ब्राह्मणोनो पण समावेश थतो ( पू. २० ).
तरिवाजो : जैन साधुओ आखा देशमां पगे चालीने पर्यटन करता. चोमासाना चार महिना बाद करतां बाकीना आखा ये वर्षमा मोटा भागना साधुओ सतत परित्रजन करता. बृहत्कल्पसूत्र 'ना भाष्यमा ' जनपदपरीक्षा' प्रकरणमां कहां छे के जनपद विहार करवाथी साधुओनी दर्शनविशुद्धि थाय छे एमां साधुओने विविध देशोनी भाषाओमा कुशल बनवानुं कहीं छे, जेथी तेओ लोकोने एमनी पोतानी
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