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देवनी वृत्तिमां उद्धृत थयेला एक प्राकृत हालरडामांनुं नगर सिंहपुर ए सौराष्ट्रनुं सिंहपुर-शीहोर हशे के बनारस पासेनू सिंहपुरी (पृ. २०१) ए विचारवा जेवो प्रश्न छे. ए ज हालरडामा निर्दिष्ट हस्तकल्प के हस्तिकल्प ए निःशंकपणे भावनगर पासेनुं हाथब छ (पृ. २१५), जे एक काळे विशेष राजकीय अगत्य धरावतुं होवू जोईए. कोसुंबारण्य ए दक्षिण गुजरातमां कोसंवा आसपासनो समृद्ध जंगलविस्तार छे (पृ. ५६-५७). जेनी आसपास धूळनो प्राकार होय एवा गामने 'खेट' (प्राकृत · खेड') कहेता (पृ. ६१-६२). समय जतां 'खेट' सामान्य नाममांथी विशेषनाम बनी गयु, जेम के खेडा. जो के गुजराती, मराठी अने हिन्दी-पंजाबीमा ‘खेडं', 'खेडे ' अने 'खेडा' शब्द — गाम 'ना सामान्य अर्थमां पण छे. 'खेट' अथवा तेनो तद्भव जेमां अंगभूत होय एवां स्थळनाम पण अनेक स्थळे छ (पृ. ६१-६२). जल अने स्थल एम बन्ने मार्गोए ज्यां जई शकाय एवा नगरने ' द्रोणमुख' कहे छे. एना उदाहरण तरीके भरुकच्छ, ताम्रलिप्ति अने स्थानक-थाणा आपवामां आवे छे (पृ. ७९, ११०, २११). कच्छमां ' दोण ' नामे एक गाम छे एनो व्युत्पत्तिगत संबंध द्रोणमुखमांना 'द्रोण' साथे हशे? माळवाना दशपुर (मंदसोर ) नगरनुं नाम सिन्धु-सौवीरना राजा उदायनना सहायक दश राजाओए ए स्थळे पडाव नाख्यो हतो तथा प्राकार बांध्यो हतो ए उपरथी पड्यु एवी अनुश्रुति नोंधाई छे (,. ८१-८२).
धर्मों अने संप्रदायो : बौद्धो अने जैनो वच्चे घणां स्पर्धा अने वादविवाद चालतां (पृ. ५९-६१, ६८-६९, १९५-९६). गुजरात अने राजस्थानमां जैनो उपरांत बौद्धोनी वसती सारा प्रमाणमां हती एवं साधार अनुमान थई शके छे. भरुकच्छमां एक बौद्ध स्तूप हतो. ए नगरमां जैनोना सुप्रसिद्ध अश्वावबोध तीर्थनो कबजो बौद्धोए लीधो हतो, ते खपुटाचार्य छोडान्यो हतो. गोविन्दाचार्य नामे बौद्ध
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