Book Title: Jain Sahitya ma Gujarat
Author(s): Bhogilal J Sandesara
Publisher: Gujarat Vidyasabha

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Page 14
________________ देवना समय सुधीमां 'आभीर' शब्दनो अर्थ हलको बनी गयो हतो (पृ. २१). मालव जाति प्राचीनतर अवंति जनपदने 'मालव' नाम आपवामां कारणभूत छे. ए. जातिना लोको त्यां लूंटफाट माटे आक्रमण करता, मनुष्योनुं अपहरण करता, अने तेमने गुलाम तरीके वेची देता (पृ. १३८-४० ). आगमसाहित्यमां कवचित् — मालव ' अने 'बोधिक ' जातिने अभिन्न गणी छे (पृ. १३८). एमने विशेनी प्रकीर्ण माहिती टोकाओमाथी सारा प्रमाणमां मळे छे (पृ. १२०-२१). यादवो अने एमनी गणसत्ताक राज्यपद्धति विशे पण केटलुक जाणवा मळे छे (पृ. ८७ ). कुशावर्त अने शौरिपुर बे हतां : एक उत्तरमा अने बीजं पश्चिममां (पृ. ४९). नवां स्थानोने जूनां नामो आपवान स्थळान्तर करती जातिओनुं वलण एमां जणाय छे. आ नामोनो संबंध यादवोना स्थळान्तर साथे छे. 'बृहत्कल्पसूत्र' ( उद्देशक १, सूत्र ५० ) अने 'निशीथसूत्र' जेवां छेदसूत्रोमांथी जाणवा मळे छे के भगवान महावीर ज्यारे साकेत नगरना सुभूमिभाग उद्यानमां निवास करता हता त्यारे तेमणे उपदेश को हतो के “ निर्ग्रन्थो अने निर्ग्रन्थीओने पूर्वमां अंग-मगध सुधी, दक्षिणमां कौशांबी सुधी, पश्चिममा स्थूणा सुधी अने उत्तरमा कुणाला ( उत्तर कोसल) सुधी विहार करवो कल्पे छे. एटलं ज आर्यक्षेत्र छे. एनी बहार विहरवं कल्पतुं नथी, पण एनी बहार ज्या ज्ञान दर्शन अने चारित्र्यनी वृद्वि थाय त्यां विहरी शकाय." ए पछी केटलीक १ आ सूत्रनां अंतिम बे वाक्यो आ प्रमाणे छे : 'एताव ताव आरिए खेत्ते णो से कप्पइ एत्तो बाहिं। तेण परं जस्थ नाण-दसण-चरित्ताई उस्सप्पंति ति बेमि।' उपर में करेलो अर्थ 'बृहत्कल्पसूत्र 'ना टीकाकार आचार्य क्षेमकीर्तिने अनुसरीने छे. डॉ. जगदीशचन्द्र जैने एनो अर्थ जरा जुदी रीते कयों छे : ' इतने ही क्षेत्र आर्य क्षेत्र है, बाकी नहीं, क्योंकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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