Book Title: Jain Sahitya ki Pragati
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 11
________________ नये प्रकाशन ४६३ प्रो० दामोदर धर्मानन्द कोसंबी संपादित 'शतकत्रयादि', प्रो० अमृतलाल गोपाणी संपादित भद्रबाहु संहिता', आचार्य जिनविजयजी संपादित 'कथाकोषप्रकरण', मुनि श्री पुण्यविजय जी संपादित 'धर्माभ्युदय महाकाव्य' इन चार ग्रन्थों के प्रास्ताविक व परिचय में साहित्य, इतिहास तथा संशोधन में रस लेने वालों के लिए बहुत कीमती सामग्री है। 'षटखण्डागम' की 'धवला' टीका के नव भाग प्रसिद्ध हो गए हैं। यह अच्छी प्रगति है। किन्तु 'जयधवला' टीका के अभी तक दो ही भाग प्रकाशित हुए हैं। आशा की जाती है कि ऐसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के प्रकाशन में शीघ्रता होगी। भारतीय ज्ञानपीठ ने 'महाबंध' का एक भाग प्रकाशित किया किन्तु इसकी भी प्रगति रुकी हुई है । यह भी शीघ्रता से प्रकाशित होना जरूरी है। _ 'यशोविजय जैनग्रंथ माला' पहले काशी से प्रकाशित होती थी। उसका पुनर्जन्म भावनगर में स्व. मुनि श्री जयन्तविजय जी के सहकार से हुआ है। उस ग्रंथमाला में स्व० मुनि श्री जयन्तविजय जी के कुछ ग्रन्थ प्रकाशित हुए है उनका निर्देश करना आवश्यक है । 'तीर्थराज ाबु' यह 'बाबु' नाम से प्रथम प्रकाशित पुस्तक का तृतीय संस्करण है। इसमें ८० चित्र हैं। और संपूर्ण श्राबु का पूरा परिचय है। इस पुस्तक की यह भी एक विशेषता है कि आबु के प्रसिद्ध मंदिर विमल सही और लूणिग वसही में उत्कीर्ण कथा-प्रसंगों का पहली बार यथार्थ परिचय कराया गया है। 'अबुदाचल प्राचीन जैन लेख संदोह' यह भी उक्त मुनि जी का ही संपादन है। इसमें आबु में प्राप्त समस्त जैन शिलालेख सानुवाद दिये गए हैं। इसके अलावा इसमें अनेक उपयोगी परिशिष्ट भी हैं। उन्हीं की एक अन्य पुस्तक 'अचलगढ़' है जिसकी द्वितीय श्रावृत्ति हाल में ही हुई. है । उन्हीं का एक और ग्रन्थ 'अबुंदाचल प्रदक्षिणा भी प्रकाशित हुआ है। इसमें बाबु पहाड़ के और उसके आसपास के ६७ गाँवों का वर्णन है, चित्र हैं और नक्शा भी दिया हुआ है। इसी का सहचारी एक और ग्रंथ भी मुनि जी ने 'अर्बुदाचल प्रदक्षिणा जैन लेख संदोह' नाम से संपादित किया है। इसमें प्रदक्षिणा गत गाँवों के शिलालेख सानुवाद हैं। ये सभी ग्रंथ ऐतिहासिकों के लिए अच्छी खोज की सामग्री उपस्थित करते हैं। वीरसेवा मंदिर, सरसावा के प्रकाशनों में से 'पुरातन जैन वाक्य सूची' प्रथम उल्लेख योग्य है। इसके संग्राहक-संपादक हैं वयोवृद्ध कर्मठ पंडित श्री जुगलकिशोर जी मुख्तार । इसमें मुख्तार जी ने दिगम्बर प्राचीन प्राकृत ग्रंथों की कारिकाओं की अकारादिक्रम से सूची दी है । संशोधक विद्वानों के लिए बहुमूल्य पुस्तक है । उन्हीं मुख्तार जी ने 'स्वयंभूस्तोत्र' और 'युक्त्यनुशासन' का भी अनु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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