Book Title: Jain Sahitya ki Pragati
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 23
________________ श्रावश्यक कार्य और आत्मा की स्वाभाविक शक्तियों व सद्गुणों का उत्कर्ष करना यह दूसरा अंग है। दोनों अंगों के लिए किए जाने वाले सम्यक् पुरुषार्थ में ही वैयक्तिक और सामाजिक जीवन की कृतार्थता है। __उक्त दोनों अंग परस्पर एसे सम्बद्ध हैं कि पहले के बिना दूसरा संभव ही नहीं, और दूसरे के बिना पहला ध्येयशून्य होने से शून्यवत् है। इसी दृष्टि से महावीर जैसे अनुभवियों ने हिंसा आदि क्लेशों से विरत होने का उपदेश दिया व साधकों के लिए प्राणातिपातविरमण श्रादि व्रतों की योजना की, परन्तु स्थूलमति व अलस प्रकृति वाले लोगों ने उन निवृत्ति प्रधान व्रतों में ही चारित्र की पूर्णता मानकर उसके उत्तरार्ध या साध्यभूत दूसरे अंग की उपेक्षा की। इसका परिणाम अतीत की तरह वर्तमान काल में भी अनेक विकृतियों में नजर आता है । सामाजिक तथा धार्मिक सभी क्षेत्रों में जीवन गतिशून्य व विसंवादी बन गया है । अतएव संशोधक विचारकों का कर्तव्य है कि विरतिप्रधान व्रतों का तात्पर्य लोगों के सामने रखें । भगवान महावीर का तात्पर्य यही रहा है कि स्वाभाविक सद्गुणों के विकास की पहली शर्त यह है कि आगन्तुक मलों को दूर करना । इस शर्त की अनिवार्यता समझ कर ही सभी संतों ने पहले क्लेशनिवृत्ति पर ही भार दिया है। और वे अपने जीवन के उदाहरण से समझा गए हैं कि क्लेशनिवृत्ति के बाद वैयक्तिक तथा सामुदायिक जीवन में सद्गुणों की वृद्धि व पुष्टि का कैसे सम्यक् पुरुषार्थ करना । तुरन्त करने योग्य काम- कई भाण्डारों की सूचियाँ व्यवस्थित बनी हैं, पर छपी नहीं हैं तो कई सूचियाँ छपी भी हैं। और कई भाण्डारों की बनी ही नहीं है, कई की हैं तो व्यवस्थित नहीं हैं। मेरी राय में एक महत्त्व का काम यह है कि एक ऐसी महासूची तैयार करनी चाहिए, जिसमें प्रो० बेलणकर की जिनरत्नकोष नामक सूची के समावेश के साथ सब भाण्डारों की सूचियाँ आ जाएँ । जो न अनी हों तैयार कराई जाएँ, अव्यवस्थित व्यवस्थित कराई जाएँ। ऐसी एक महासूची होने से देश विदेश में वर्तमान यावत् जैन साहित्य की जानकारी किसी भी जिज्ञासु को घर बैठे सुकर हो सकेगी और काम में सरलता भी होगी। मद्रास में श्री राघवन संस्कृत ग्रन्थों की ऐसी ही सूची तैयार कर रहे हैं। बर्लिन मेन्युस्क्रिप्ट की एक बड़ी विस्तृत सूची अभी ही प्रसिद्ध हुई है । ऐसी ही वस्तुस्थिति अन्य पुरातत्त्वीय सामग्री के विषय में भी है । उसका भी संकलन एक सूची द्वारा जरूरी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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