Book Title: Jain Sahitya ki Pragati Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 1
________________ जैन साहित्य की प्रगति समानशील मित्रगण ! — मैं आभारविधि व लाचारी प्रदर्शन के उपचार से प्रारंभ में ही छुट्टी पा लेता हूँ। इससे हम सभी का समय बच जाएगा | - आपको यह जान कर दुःख होगा कि इसी लखनऊ शहर के श्री अजित प्रसाद जी जैन अब हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने गोम्मटसार जैसे कठिन प्रन्यों का अंग्रेजी में अनुवाद किया । और वे जैन गजट के अनेक वर्षों तक संपादक रहे । उनका अदम्य उत्साह हम सब में हो ऐसी भावना के साथ उनकी प्रात्मा को शान्ति मिले यही प्रार्थना है। सुप्रसिद्ध जैन विद्वान् श्री सागरानंद सूरि का इसी वर्ष स्वर्गवास हो गया है। उन्होंने अपनी सारी जिन्दगी अनेकविध पुस्तक प्रकाशन में लगाई । उन्हीं की एकाग्रता तथा कार्यपरायणता से आज विद्वानों को जैन साहित्य का बहुत बड़ा भाग सुलभ है । वे अपनी धुन में इतने पक्के थे कि प्रारंभ किया काम अकेले हाथ से पूरा करने में भी कभी नहीं हिचके। उनकी चिर-साहित्योपासना हमारे बीच विद्यमान है । हम सभी साहित्य-संशोधन प्रेमी उनके कार्य का मूल्यांकन कर सकते हैं। हम उनकी समाहित आत्मा के प्रति अपना हार्दिक श्रादर प्रकट करें। जैन विभाग से सम्बद्ध विषयों पर सन् १९४१ से अभी तक चार प्रमुखों के भाषण हुए हैं। डॉ. ए. एन्. उपाध्ये का भाषण जितना विस्तृत है उतना ही अनेक मुद्दों पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालने वाला है। उन्होंने प्राकृत भाषा का सांस्कृतिक अध्ययन को दृष्टि से तथा शुद्ध भाषातत्त्व के अभ्यास की दृष्टि से क्या स्थान है इसकी गंभीर व विस्तृत चर्चा की है। मैं इस विषय में अधिक न कह कर केवल इससे संबद्ध एक मुद्दे पर चर्चा करूँगा। वह है भाषा की पवित्रापवित्रता की मिथ्या भावना । शास्त्रीय भाषाओं के अभ्यास के विषय में__मैं शुरू में पुरानी प्रथा के अनुसार काशी में तथा अन्यत्र जब उच्च कक्षा के साहित्यिक व आलंकारिक विद्वानों के पास पढ़ता था तब अलंकार नाटक आदि में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 25