Book Title: Jain Philosophy
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 3
________________ वन्दे जिनवरम् जैनफिलासोफी। (स्वर्गीय विद्वान् गांधी वीरचन्द राघवजी पी. ए. के चिकागो (अमारका ) में दिये हुए व्याख्यानका अनुवाद) ___ मैंने अपनी इस व्याख्यानमालाका अन्तिम विषय जैनीजम (जैनधर्म निश्चय किया है । इसमें मैं जैनधर्म सम्बन्धी आवश्यक विपयोंका समावेश संक्षेपमें करूंगा:-. किसी भी तत्वविधा (फिलासोफी) का अथवा धर्मका अभ्यास उसकी सत्र ओरोसे होना चाहिये । और किसी भी धर्म तथा फिला. मोफीका वास्तविक आशय समझ लेने के लिये आगे कहीं हुई चार बातें अवश्य जानना चाहिये:--- किसी भी धर्म वा फिलासोफीका सृष्टिकी उत्पत्तिके विषयमें क्या मत है ? ईश्वरके विषयमें क्या विचार है ? एक शरीर छोड़नेपर आस्माकी क्या दशा होती है ? और आत्मजीवनके नियम क्या २ हैं ! इन प्रश्नोंके उत्तर हमको किसी भी धर्म वा फिलासोफीके वास्तविक स्वरूपकी जानकारी करा देंगे। हमारे देशमै धर्म फिलासोफासे मिन्न नहीं है, और इसी प्रकारसे धर्म और फिलासोफी सायन्ससे कुछ भेद नहीं रखती हैं । परन्तु हम यह भी नहीं कहते हैं कि, सायन्स अथवा धार्मिक शास्त्र दोनों एक ही रूप हैं। हम धर्मके लिये. अंग्रेजीके 'रिलीजन । शब्दका प्रयोग नहीं करते हैं। क्योंकि अंग्रे १ गांधी महाशयने अमेरिकामें बहुत से व्याख्यान दिये थे, उनमें यह अ. तिम व्याख्यान था। २ भारतवमै । - --

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