Book Title: Jain Philosophy
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 20
________________ हैं। जब हम यह तत्वसम्बन्धी विचार करते हैं, तब इस देश (अमेरिका) में और दूसरे देशोंमें तथा दूसरे धर्मोमें अन्तर यहीं पड़ता है कि-दूसरे जो कुछ समझते हैं, वह ऊपर कहे हुए सिद्धान्तोंको ध्यानमें रखके समझते हैं, वाइबिल कहती है कि, " तुम किसीको मत मारो" और जैन दर्शन तथा दूसरे:दर्शन कहते हैं कि, सर्व प्राणियोंपर प्रेम और दया रखनी चाहिये । इन सबका अर्थ यही है कि, हमें किसी भी जीदको मारना नहीं चाहिये । हमें प्रत्येक वस्तुके गुण, लक्षण और कर्म ये सब ध्यानमें रखना चाहिये । जगतमें जिस वस्तुकी स्थिति हम जान सकते हैं, उसका केवल एक भाग जाननेसे हम उसके ऐसे नियम नहीं जान सकते हैं, कि जो सारे जगतके लिये लागूहो सकें। तुम्हें जगतका स्वभाव ठीक ठीक वर्णन करना हो, तो तुम उस-की जुदा जुदा सम्पूर्ण वस्तुओंके स्वभावोंका अभ्यास करो । जव तुम यह करलोगे, तभी सब भागोंके लिये वे नियम लागू कर सकोगे । हम अपने मनमें यह समझ सकते हैं कि हमारा किरायेदार नचिके मजिलमें रहता है इसलिये हम उससे ऊंचे हैं। परन्तु इससे ऐसा नहीं समझ लेना चाहिये कि, हम ऊंचे हैं, इसलिये उसे पैरोंसे रोध डालनेका हमें अधिकार है । उसको भी किसी समय पहले दूसरे तीसरे और शायद अन्तिम मंजिलपर रहनेका अधिकार मिल सकता है। जो ऊंची अवस्था हो उसे नीची अवस्थावालेको रोंध अलनेका अधिकार नहीं है। यदि कोई यह कहे कि, उसे स्वयं वैसा करनेका सत्व है, अथवा दूसरे जीवोंके मारे विना आपमें पूरा वल नहीं आ सकता है, तो हमारा तत्वज्ञान तत्काल ही कहेगा. कि नहीं, चाहे जैसी ऊंची अवस्थामें किसी

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