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आत्मासम्बन्धी विचार |
जिस पदार्थका अस्तित्व होता है, उसकी कुछ न कुछ आकृति होनी चाहिये और इन्द्रियोंसे उसका ज्ञान भी होना चाहिये यह हम सवका साधारण अनुभव है । परन्तु वास्तविक विचार किया जाय, तो मालूम होगा कि, यह अपने जीवके केवल इंद्रिय गोचर भागका - ही अनुभव है और वह केवल मनुष्य व्यक्तिका छोटेसे छोटा भाग है। केवल इस अनुमवसे ही हम अनुमान वाँघते हैं और निश्चय करते हैं कि यह अनुभव सव पदार्थोंमें लगाना चाहिये । इस विश्वमें ऐसे भी पदार्थ हैं कि जो इन्द्रियोंके द्वारा जाने ही नहीं जा सकते हैं-बहुतसे ऐसे सूक्ष्म द्रव्य हैं और व्यक्ति हैं कि जो केवल ज्ञानसे अथवा आत्माले ही जाने जा सकते हैं। ऐसी वस्तुएं अथवा द्रव्ये देखी नहीं जा सकतीं, सुनीं नहीं जा सकतीं, चखी नहीं जा सकती संघी नहीं जा सकतीं, इतना ही नहीं किन्तु हुई भी नहीं जा सकती हैं । ऐसे पदार्थों के रहने के लिये कुछ स्थानकी अपेक्षा नहीं है, अथवा उसका कुछ स्पर्श हो सके ऐसा भी होनेकी जरूरत नहीं है। इस प्रकार चाहे उनमें आकार न हो तो भी उनका अस्तित्व हो सकता है । वे वस्तुएँ किसी भी आकारमें हों, परन्तु यह जरूरत नहीं है कि, जिस आकारके शब्दरूप वगैरह होते हैं, उस आकारमें उनका अस्तित्व हो ।
ऐसी तो एक भी वस्तु नहीं मिल सकती है कि जिसमें जड़के ल क्षण हों और चैतन्यके भी लक्षण हों। क्योंकि जड़के लक्षण चेतनके क्षणों से बिलकुल उलटा होते हैं। हां एकके पेटमें दूसरी वस्तु हे कती है - परन्तु इससे एक वस्तु दूसरी नहीं हो जाती है । जब