Book Title: Jain Philosophy Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 9
________________ (७) खास नियमोंके आधीन हैं और उनके वीचमें कोई पुरुष अथवा ईश्वर नहीं पड़ सकता है । इतना ही नहीं परन्तु वह कुछ असर भी नहीं कर सकता है । ये शक्तियां बुद्धिपूर्वकं हमारा कुछ भला बुरा भी नहीं कर सकती हैं। उनके विषयमें यह कहना कि वे हमपर असर करती हैं, यह तो केवल शक्तियोंकी कानूनके विषयों जिसके कि वे आधीन हैं अज्ञानता प्रगट करना है । इन शक्तियोंको हम द्रव्य (Substance) कहते हैं । जड़ पदार्थोंमें असंख्य गुण और स्वभाव होते हैं और वे जुदा जुदा समयमें जुदा जुदा रीतिसे प्रगट होते हैं। __ हम अपना विशेष ज्ञान प्रगट किथे विना नहीं जान सकते हैं कि जड़ प्रकृतिमें कौन कौन शक्तियां छुपी हुई हैं। इससे कोई भी नवीन वस्तु प्रगट होती है तो हम दिङ्मूढ हो जाते हैं । यदि कुछ हमें 'अचरजमें डालनेवाली घटना होती है, तो हम उसे किसी देवकी करतूत समझ बैठते हैं। परन्तु ज्योंही हम शास्त्रीय सिद्धातोंको समझते हैं, त्योंही सारी नवीनता फिसल जाती है और वह इतनी सीधीसाधी बात मालम होने लगती है, जैसी कि सूर्यके हर रोज उदय होनेकी और अस्त होनेकी बात है। हजारों वर्ष पहले प्रकृतिके जुदा जुदा दृश्य जुदा जुदा देशोमें देव और देवियों के काम समझे जाते थे । परन्तु जब हम शास्त्रीय विद्या अर्थात् सायन्सको समझने लगते हैं तब ये दृश्य विलकुल सीधे साधे जान पड़ते हैं। यह विचार पलायन कर जाता है कि वे बड़े बड़े दैवी शक्ति सम्पन्न पुरुप हैं। तब ... जैनियोंका ईश्वर क्या है ? . ऐसा यदि आप. पूछेगे, तो उसके उत्तरमें मैं जो कुछ ऊपर कह गया। हूं, उससे आपके हृदयमें यह तर्क तो अवश्य उठी होगी कि , 'ईश्वरPage Navigation
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