Book Title: Jain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Author(s): Sima Rani Sharma
Publisher: Piyush Bharati Bijnaur

View full book text
Previous | Next

Page 247
________________ ध्यान का लक्ष्य-लब्धियाँ एवं मोक्ष (२२८) की अल्पता आदि होती प्राप्त है। श्री मद्भगवद्गीता में तो पूरे एक अध्याय में इसका वर्णन किया गया है। पौराणिक साहित्य में सिद्धियों के १८ प्रकार बतलाये गये हैं। इनमें से-अणिमा, महिमा और लघिमा-ये तीन शारीरिक सिद्धियाँ कही गई हैं। वहाँ इन्द्रिय सिद्धि को 'प्राप्ति' कहा गया है। 'प्राकाम्य' नामक सिद्धि से साधक सभी पदार्थो को इच्छा के अनुसार प्राप्त कर लेता है । 'ईशिता' सिद्धि से माया के कार्यों को साधक प्रेरित करता है । 'वशिता' सिद्धि के द्वारा साधक भोगों में आसक्त नहीं होता है । 'कामावसायिता' सिद्धि के द्वारा साधक अपनी इच्छा के अनुसार सुखों को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है।= इन सिद्धियों के अलावा १-त्रिकालज्ञत्व, २-अद्वन्द्वत्व, ३-परचित्त अभिज्ञान, ४प्रतिष्टम्भ तथा ५-अपराभव-ये पाँच सिद्धियाँ और भी हैं।x हठयोग के ग्रन्थों में भी अनेक प्रकार की सिद्धि यों का वर्णन प्राप्त होता है। योग दर्शन में लब्धियाँ : योगदर्शन में जो यम, नियम, आसन, प्राणायाम आदि जो योग के आठ अंग बतलाये गये हैं, उनमें से प्रत्येक अङग की साधना करने से आभ्यन्तर एवं बाह्य दोनों प्रकार की सिद्धियाँ योगी को प्राप्त होती हैं । यम से प्राप्त विभूतियों के विषय में उल्लेख किया गया है कि अहिंसा व्रत का पालन करने वाले योगी के सान्निध्य में व्याघ्र, सिंह आदि हिंसक जीव भी अपनी क्रूर प्रवृत्ति को त्याग देते हैं। सत्य : न तस्य रोगो न जरा न मृत्युः प्राप्तस्य योगाग्निमयं शरीरम् । लघुत्वमारोग्यमलोलुपत्वं, वर्णप्रसाद स्वरसौष्ठवं च । गन्धः शुभोमूत्रपुरीषमल्पं, योगप्रवृत्तिं प्रथमां वदन्ति । (श्वेताश्वतर उपनिषद् २/१२-१३) - श्री मद् भगवद्गीता, दशवां अध्याय .... = श्री मद् भागवत पुराण, स्कन्ध ११, अ. ५, श्लोक ६-७ x वही, स्कन्ध ११, अ. ५, श्लोक ८

Loading...

Page Navigation
1 ... 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278