Book Title: Jain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Author(s): Sima Rani Sharma
Publisher: Piyush Bharati Bijnaur

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Page 271
________________ उपसंहार [२५२] प्राप्ति होती है, जिसके लिए किसी अन्य की अपेक्षा नहीं जो बाधा रहित तथा अविनश्वर है एवं बन्ध का कारण नहीं है। यह सुख ध्यान के द्वारा निज में लीन होने से ही होता है । कहा है यों चिन्त्य निज में थिर भये फिर अकथ जोआनन्द लहो। सो इन्द्रमाहिं नरेन्द्र वा अहमिन्द्र के नाही कहो ।। निज में स्थिर हो पर जो परम आह्लादरूप सुख की उपलब्धि होती है, वह इन्द्र, अथवा अहमिन्द्र के नहीं हो सकती है । इसी अतीन्द्रिय आनन्द की खोज भारतीय दर्शन का चरम लक्ष्य है ।

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