Book Title: Jain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Author(s): Sima Rani Sharma
Publisher: Piyush Bharati Bijnaur

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Page 256
________________ (२३७)जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन लेकिन इन लब्धियों के व्यामोह से योगी को दूर रहने को ही कहा गया है, क्योंकि योगी का लक्ष्य तो मोक्ष की प्राप्ति करना होता है। यदि कभी मजबूरी में योगी को इन लब्धियों का प्रयोग करना भी पड जाये तो उसको बाद में प्रायश्चित करना बेहद जरूरी है अन्यथा वह योगी साधक से विराधक बन जाता है। योगी को तप की साधना केवल कर्मो की निर्जरा के लिए ही करनी चाहिए, किसी भी लौकिक प्रयोजन के लिए नहीं करनी चाहिये । + लब्धियाँ मोक्ष की साधना में बाधक होती है। अतः इनकी प्राप्ति के लिए न तो साधना करनी चाहिये और न ही इनका प्रयोग वैदिक परम्परा में कैवल्य : ऋग्वेद एवं ब्राह्मणों के अनुसार मानव का लक्ष्य धरती पर उत्कृष्ट जीवन की प्राप्ति और स्वर्ग के देवताओं के सामीप्य में सुखोपभोग है, ब्राह्मण यथाविधि यज्ञानुष्ठान करने वालों को विविध देवताओं के सामीप्य में आनन्द लाभ की आशा दिलाते हैं। उपनिषदों, गीता, पुराणों, योगवाशिष्ठ एवं योगदर्शनादि वैदिक . ग्रन्थों में कहा गया है कि जब साधक अपने चित्त को पूरी तरह से शुद्ध कर लेता है तब उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष का वैदिक परम्परा में कैवल्य के नाम से भी वर्णन किया गया है । अमृतविन्दूपनिषद में मन के अवरोध को मोक्ष का उपाय बतलाया गया है। - योग के अभ्यास से साधक को मूक्ति एवं ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया गया है । = मोक्ष की प्राप्ति के लिए मुनि को पहले कुण्डलिनी शक्ति को जगाना पड़ता है जिससे वह मोक्ष के द्वार + शवैकालिक सूत्र ६/४ योगशतक,८३-८५ पातञ्जल योग सूत्र ३/३८-ते समाधाधुपसर्गाः व्युत्थाने सिद्ध यः । - अमृतविन्दूपनिषद् १/५ = योगात्संजायते ज्ञानं ज्ञानाद्योगः प्रवर्तते । (त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद् १९)

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