Book Title: Jain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Author(s): Sima Rani Sharma
Publisher: Piyush Bharati Bijnaur

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Page 245
________________ ध्यान का लक्ष्य-लब्धियाँ एवम् मोक्ष(२२६) इन चौदह गुणस्थानों में से प्रारम्भ के चार गुणस्थानों का अन्तर्भाव बहिरात्मा में होता है + और चौथे गुणस्थान से लेकर बारहवे गुणस्थान तक का बिलय अन्तरात्मा में हो होता है क्योंकि इन अवस्थाओं में आत्मा का बढ़ना एवं गिरना होता रहता है और इसलिए इन गुणों का अन्तर्भाव अन्तरात्मा में किया गया है । शेष अन्तिम दो गुणस्थानों अर्थात् सयोगकेवली एवं अयोगकेवली का अन्तर्भाव परमात्मा में किया गया है क्योंकि इन अवस्थाओं में जीव परम तत्त्व अर्थात् चरमोत्कर्ष को प्राप्त हो जाता है । इस प्रकार से चौदह गुणस्थानों का बहिरात्मा, अन्तरात्मा एवं परमात्मा में अन्तर्भाव किया जाता है। ध्यान का लक्ष्य : लब्धियाँ योगी साधक यम, नियम, आसन, प्राणायाम, ध्यान, धारणा, तप आदि की साधना करके ध्यान की सिद्धि प्राप्त करता है और इस साधना के द्वारा वह अपने सभी संचित कर्मों का क्षय कर देता है । = ध्यान की साधना के द्वारा अनेक चमत्कारिक शक्तियों का उदय होता है जिन्हें लब्धियाँ कहते हैं । ये विशिष्ट शक्तियाँ जनसाधारण के लिए बहुत ही दुर्लभ होती हैं इसीलिए ये उन लोगों को अद्भुत एवं चमत्कारी प्रतीत होती हैं। जिस साधक का अन्तिम + (क) बहिरात्मा शरीरादौ जातात्मभ्रान्तिरांतरः।। चित्तदोषात्मविभ्रान्तिः परमात्माऽतिनिर्मलः ॥ (समाधि तन्त्र ५) (ख) योगसार ६ SH (क) अन्ये तु मिथ्यादर्शनादि भाव परिणतो बाह्यात्मा, सम्यग्दर्शना दिपरिणतस्त्वन्तरात्मा, केवलज्ञानादिपरिणतस्तु परमात्मा । तत्राद्य गुण स्थानेत्र बाह्यात्मा, ततः परं क्षीणमोहगणस्थानं यावदन्तरात्मा । तत: परन्तु परमात्मेति । (अध्यात्म परीक्षा १२५) (ख) आध्यात्मिक विकास क्रम, पृ० ४० = क्षिणोति योगः पापानि, चिरकालाजितान्यपि। प्रचितानि यथैधांसि, क्षणादेवाशुशुक्षणिः ॥ (योगशास्त्र १/७)

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