Book Title: Jain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Author(s): Sima Rani Sharma
Publisher: Piyush Bharati Bijnaur

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Page 253
________________ ध्यान का लक्ष्य-लब्धियाँ एवम् मोक्ष (२३४) ११-आशीविश लब्धि : इस लब्धि के द्वारा योगी को शाप देने तथा अनुग्रह करने की शक्ति प्राप्त होती है। १२-केवल लब्धि : यह सर्वोत्कृष्ट लब्धि मानी जाती है। यह योगी को चार घातिया कर्मों अर्थात् दर्शनावरण, ज्ञानावरण, मोहनीय एवं अन्तराय कर्मो के क्षय होने से प्राप्त होती है। इस केवल-लब्धि का धारक तीनों लोकों और तीनों कालों के विषय में सभी बातों की जानकारी रखता है और तीनों लोकों को स्पष्ट देखता है और अनन्त सुख में रमण करता है। १२-गणधर-लब्धि : इस लब्धि के धारक योगी को गणधर पद की प्राप्ति होती है, जो तीर्थकर के प्रधान शिष्य थे। १४-पूर्वधर-लब्धि: इस लब्धि के द्वारा साधक अन्तर्मुहूर्त में ही चौदह पूर्वो का ज्ञान प्राप्त कर लेता है। १५-अर्हत्-लब्धि : इस लब्धि के द्वारा साधक अहंत् पद को प्राप्त करता है। १६-चक्रवर्ती-लब्धि : इस लब्धि के माध्यम से मुनि को चौदह रत्न, नव निधान और छह खण्ड पृथ्वी के स्वामी पद अर्थात् चक्रवर्ती पद की प्राप्ति होती है। १७-बलदेव-लब्धि: इस लब्धि से साधक बलदेव पद को प्राप्त करता है। १८-वासुदेव-लब्धि : __इस लब्धि के द्वारा मुनि को वासुदेव पद की प्राप्ति होती है। वासुदेव तीन खण्ड पृथ्वी के स्वामी होते हैं, इसीलिए उन्हें अर्द्धचक्री कहा जाता है।

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