Book Title: Jain Kala Ka Avdan
Author(s): Marutinandan Prasad Tiwari
Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf

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Page 8
________________ जैन कला का अवदान श्वेतांबर स्थलों पर जिन मूर्तियों के पीठिका लेखों में जिनों के नामोल्लेख तथा दिगम्बर स्थलों पर उनके लांछनों के अंकन की परम्परा दृष्टिगत होती है । जिनों के जीवन दृश्यों एवं समवसरणों के अंकन के उदाहरण केवल श्वेतांबर स्थलों पर ही सुलभ हैं । ये उदाहरण ग्यारहवी से तेरहवीं शती ई. के मध्य के हैं, और ओसिया, कुंभारिया, आबू (विमलवसही, लूणवसही ) एवं जालोर से मिले हैं । ४५ श्वेतांबर स्थलों पर जिनों के बाद १६ महाविद्याओं और दिगम्बर स्थलों पर यक्ष-यक्षियों के चित्रण सर्वाधिक लोकप्रिय थे । १६ महाविद्याओं में रोहिणी, वज्रां - कुशी, वज्रश्रृंखला, अप्रतिचक्रा, अच्छुप्ता एवं वैरोत्या की ही सर्वाधिक मूर्तियाँ मिली हैं । शांतिदेवी, ब्रह्मशांति यक्ष, जीवन्तस्वामी महावीर, गणेश एवं २४ जिनों के माता-पिता के सामूहिक अंकन (१०वीं - १२वीं शती ई.) भी श्वेतांबर स्थलों पर ही लोकप्रिय थे । सरस्वती, बलराम, कृष्ण, अष्ट दिक्पाल, नवग्रह एवं क्षेत्रपाल आदि की मूर्तियाँ श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही स्थलों पर उत्कीर्ण हुई । दिगम्बर स्थलों से मूर्तियाँ मिली हैं । त्रितीर्थी मूर्तियों पूर्व मध्य युग में श्वेतांबर स्थलों पर अनेक ऐसी देवियों की भी मूर्तियाँ दृष्टिगत होती हैं, जिनका जैन परम्परा में अनुल्लेख है । इनमें हिन्दू शिवा और जैन सर्वानुभूति (या कुबेर) के लक्षणों के प्रभाव वाली देवियों की मूर्तियाँ सबसे अधिक हैं । जैन युगलों और राम-सीता तथा रोहिणी, मनोवेगा, गौरी, गांधारी यक्षियों और गरुड़ यक्ष की मूर्तियाँ केवल दिगम्बर स्थलों से ही मिली हैं । परम्परा विरुद्ध और परम्परा में अवणित दोनों प्रकार की कुछ द्वितीर्थी और त्रितीर्थी जिन मूर्तियों का अंकन और दो उदाहरणों में में सरस्वती और बाहुबली का अंकन, बाहुबली एवं अंबिका की दो मूर्तियों में यक्षयक्षी का निरूपण तथा ऋषभनाथ की कुछ मूर्तियों में पारम्परिक यक्ष-यक्षी, गोमुखचक्रेश्वरी, के साथ ही अम्बिका, लक्ष्मी, सरस्वती आदि का अंकन इस कोटि के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं । इस वर्ग की मूर्तियाँ मुख्यतः देवगढ़ एवं खजुराहो से मिली हैं । श्वेतांबर और दिगम्बर स्थलों की शिल्प - सामग्री के अध्ययन से ज्ञात होता है कि पुरुष देवताओं की मूर्तियाँ देवियों की तुलना में नगण्य हैं। जैन कला में देवियों की विशेष लोकप्रियता तांत्रिक प्रभाव का परिणाम हो सकती है । जैन परम्परा पर तान्त्रिक प्रभाव के अध्ययन की दृष्टि से कतिपय सन्दर्भों की ओर विद्वानों का ध्यान आकृष्ट करना उपयुक्त होगा । खजुराहो के पार्श्वनाथ मन्दिर (९५०-७० ई.) की भित्ति पर चारों तरफ शक्तियों के साथ आलिंगन मुद्रा में देवयुगलों की कई मूर्तियाँ हैं । इनमें शिव, विष्णु, ब्रह्मा, अग्नि, कुबेर, राम, बलराम आदि की शक्ति सहित मूर्तियाँ हैं जो परिसंवाद- ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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