Book Title: Jain Kala Ka Avdan
Author(s): Marutinandan Prasad Tiwari
Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf

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Page 16
________________ जैन कला का अवदान ५३ कोई प्रयास ही नहीं किया गया । यक्षों की केवल द्विभुजी और चतुर्भुजी मूर्तियाँ बनीं, पर यक्षियों की दो से बीस भुजाओं तक की मूर्तियाँ मिली हैं । यक्ष और यक्षियों की सर्वाधिक जिन-संयुक्त और स्वतंत्र मूर्तियाँ उत्तर-प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के दिगंबर स्थलों पर उत्कीर्ण हुयीं । अतः यक्ष एवं यक्षियों के मूर्तिविज्ञान परक विकास के अध्ययन की दृष्टि से इस क्षेत्र का विशेष महत्त्व है । इस क्षेत्र में दशवीं से बारहवीं शती ई. के मध्य ऋषभनाथ, नेमिनाथ एवं पार्श्वनाथ के साथ पारंपरिक, और सुपार्श्वनाथ, चंद्रप्रभ, शांतिनाथ एवं महावीर के साथ स्वतंत्र लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी युगल निरूपित हुए । अन्य जिनों के साथ यक्ष-यक्षी द्विभुज और सामान्य लक्षणों वाले हैं । इस क्षेत्र में चक्रेश्वरी एवं अबिका की सर्वाधिक मूर्तियाँ हैं । साथ ही रोहिणी, मनोवेगा, गौरी, गांधारी, पद्मावती एवं सिद्धायिका की भी कुछ मूर्तियाँ मिली हैं । चक्रेश्वरी एवं पद्मावती की मूर्तियों में सर्वाधिक विकास दृष्टिगत होता है । यक्षों में केवल सर्वानुभूति, गरुड़ ( देवगढ़) एवं धरणेन्द्र की ही कुछ स्वतंत्र मूर्तियाँ मिली हैं । इस क्षेत्र में २४ यक्षियों के सामूहिक अंकन के भी दो उदाहरण हैं, जो देवगढ़ ( मंदिर १२ ई. ८६२ ) से मिले हैं । देवगढ़ के उदाहरण में अंबिका के अतिरिक्त अन्य किसी यक्षी के साथ पारंपरिक विशेषताएँ नहीं प्रदर्शित हैं । देवगढ़ समूह को अधिकांश यक्षियां सामान्य लक्षणों वाली और समरूप, तथा कुछ अन्य जैन महाविद्याओं एवं सरस्वती आदि के स्वरूपों से प्रभावित हैं । गुजरात और राजस्थान में अंबिका की सर्वाधिक मूर्तियाँ बनीं । चक्रेश्वरी, एवं सिद्धायिका की भी मूर्तियाँ मिली हैं । यक्षों में केवल गोमुख, वरुण (१, ओसिया महावीर मंदिर) सर्वानुभूति एवं पार्श्व की ही स्वतंत्र मूर्तियाँ हैं । सर्वानुभूति की मूर्तियाँ सर्वाधिक हैं । इस क्षेत्र में छठीं से बारहवीं शती ई. तक सभी जिनों के साथ एक ही यक्ष -यक्ष युगल, सर्वानुभूति एवं अंबिका, निरूपित हैं । केवल कुछ उदाहरणों में ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर के साथ पारंपरिक या स्वतंत्र लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी उत्कीर्ण हैं । ये उदाहरण ओसिया, आबू एवं कुंभारिया जैसे स्थलों से मिले हैं । बिहार, उड़ीसा एवं बंगाल में यक्ष-यक्षियों की मूर्तियाँ नगण्य हैं । केवल चक्रेश्वरी, अंबिका एवं पद्मावती की कुछ स्वतंत्र मूर्तियाँ मिली हैं । उड़ीसा की नवमुनि एवं बारभुजी गुफाओं ( ११वीं - १२वीं शती ई.) में क्रमश: सात और चौबीस यक्षियों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । बारभुजी गुफा की २४ यक्षी मूर्तियां संबंधित जिनों की मूर्तियों के नीचे उत्कीर्ण हैं । द्विभुज से विंशतिभुज यक्षियाँ ललितमुद्रा या ध्यानमुद्रा में आसीन हैं । २४ यक्षियों में केवल चक्रेश्वरी, अंबिका एवं पद्मावती के निरूपण परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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