Book Title: Jain Granthavali Author(s): Jain Shwetambar Conference Publisher: Jain Shwetambar Conference Mumbai View full book textPage 9
________________ प्रस्तावना. म स्तीर्ण आर्यावर्तना सुस्थित प्रदेशोमां ज्यारे पंचम महाज्ञानधारक चरम तीर्थकर श्री महावीरस्वामी विचरता हता, अने अज्ञानरूपी अंधकारमा मूछित पडेला बालजीवोने ज्ञानरूपी जाज्वल्यमान सूर्यना प्रकाशवडे पदार्थ सत्य स्वरूप दर्शावी तेनुं महात्म्य प्रत्यक्ष दाखला दलीलोथी सिद्ध करी बतावी. ..९१ तेमना उपर अनंत उपकार करता हता. ते समयना ते उच्चतम ज्ञानना महात्म्यनुं वर्णन करवू ते केवळ झगझगता अमि उपर हाथ मुकवाथी थनार भावी चमकारनो अनुभव करी अमिनी प्रखरतार्नु वर्णन करवा सरखंज कहेवाय. छतां कुदरती लियमे आवी प्रखर वस्तु पण केवी तेि काळना वहेवा साथे ओछापणने अंगीकार करे छे. जणाववा खातर अत्रे थोड़ेक जणाववानी अगत्यता छे. जेम जेम समय वितवा मांड्यो इस तेम उपरोक्त महाज्ञाननी प्रखरताए कुदरती रीते समुद्रनी भरती ओट जेवू स्वरूप औरण कयु, अने ज्ञाननी न्युनता थती चाली. महाज्ञानी तीर्थकर महाराजे पण पोताना बागममां कालनु स्वरूप वर्णवतां उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी एवा चे प्रकारना काळ पर्यावी तेना छ भाग जणाव्या छे. ए छ भागने कोई काळ कहे छे, कोई युग कहे छे ने कोई आरा (आरक) कहे छे. उत्सर्पिणी काळमां प्रत्येक वस्तुनुं उत्कर्षपणुं होय छे, ने अवसर्पिणीकाळमां अवनतपणुं होय छे. ते कुदरती नियमने अनुसरीने सांप्रत. चालता जसर्पिणी काळे पोताना खभावनो प्रभाव देखाडवानी शरुआत करी. . * श्री महावीरस्वामी मोक्षगत थया तेमनी साथे ते महाज्ञाने जाणे मोक्ष जेवा शुचिस्थानमा अचळवास करवानुं पसंद कयु होयनी! तेम धीमे धीमे ज्ञाननी न्युनता थवी शुरु थई. पूर्वे ते वखतना पुण्यवान प्राणीओ स्वात्मशक्तिने क्षणमा तेना कर्तव्य स्थानमा मुकी उपर जणावलं महाज्ञान प्राप्त करता हता, अने ते ज्ञानने के जे आत्मानो संपूर्ण पाट करेलो गुणज छे ते जागीने पोताना आत्मरूपी भंडारमा राखी अन्यना आत्मभंडारमा वा माटे अत्यंत सहेलाइथी टुंक महेनते सरळ मार्ग बताववाने शक्तिमान थता हता.Page Navigation
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