Book Title: Jain Granthavali
Author(s): Jain Shwetambar Conference
Publisher: Jain Shwetambar Conference Mumbai

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Page 14
________________ प्रस्तावना. भंडारोमा राखेखें जैन साहित्य सेंकडो वर्ष सुधी बंध बारणे रडं. तेथी परिणाम एवं भयकर आव्यु के पूर्वना धुरंधर आचार्योंए अपरिमित परिश्रम वेठी रचेला अद्भुत उपयोगी ग्रंथो उद्देहीआदि जंतुओना भक्षणथी तेमज शरदी विगैरे कारणोथी नाश पामी गया. दाखला तरीके अत्रे अमारी जाणना दुर्लभ्य तथा अनुपलब्ध ग्रंथोनी टुंक नोंध लेवानी अगत्यता जोइए छीए. महानिशीथ जेवा अत्युपयोगी छेद सूत्रनी टीका हालमां क्यांय पण मळी शकती नथी. पंचकल्पना मूळनी स्थिति तेवीज जणाय छे, धरसेनाचार्य रचित विद्यानुं निधान योनीप्राभूत जेनां सतावीश पीठ छे, तेनी पण जीर्णशीर्ण हालत थवाथी नष्ट प्राय थयुं छे. हरिभद्राचार्य महाराजे रचेला १४४४ प्रकरणोमांथी हालमा गण्या गाव्यांज मळी आवे छे. उमास्वाती वाचके रचेला ५०० ग्रंथो पैकी पांच ग्रंथो पण पुरा मळी आवता नथी, अने श्रीमद् हेमचंद्राचार्यकृत साडात्रण क्रोड श्लोकनो पण घणो भाग मळतो नथी. मात्र बसो वर्ष अगाउज थएला उपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराजे रचेला सो ग्रंथो पैकी पण जूज ग्रंथोज हाथ भावे छे. बाकी क्यां छे तेनो पत्तो पण लागतो नथी. कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्रसूरिकृत हैमवृहन्न्यास क्यांय पण संपूर्ण स्थितिमां ओवामा आवतो नथी. श्री हेमाचार्यना शिष्य श्रीमद् रामचंद्र सूरिए एकसो प्रबंधो रच्या हता. तेमांना एक दशक जेटला प्रबंधो पण जोवामां आवता नथी विगेरे विगेरे. अनेक विद्वान् आचार्योए रचेला तत्वाना ग्रंथो नाबुद थइ गया. आवे समये ग्रंथोनो नाश अटकाववाने बाने मुखौमां जुना वखतनुं पिशाच पेठे ते ए के ज्यारे आपणा वडीलोए ग्रंथो प्रसिद्धिमां नहीं लावतां तेमनुं उत्तम रीते संरक्षण करवामांज श्रेय मान्यु. तो आपणे पण तेज मार्गर्नु अवलंबन करवु श्रेष्ट छे. आवी अत्यंत खेदजनक अंधपरंपराना चकडोळामां हिंचका खातुं जैन साहित्य वखत जतां नष्ट प्राय थशे एम जाणी हालमा राज्य कर्ती, दयाळु ब्रिटिश सरकारनी सत्ता तळेना शांत समयमां "श्री जैन श्वेतांबर कोन्फरन्स" ना उत्पादक अने नेता नररत्न शेठ फकीरचंद प्रेमचंद शेठ गुलाबचंदजी ढट्टा एम्. ए., आदि धर्मपरायण जैन कोमना आगेवानोए आपणा पूर्वाचार्योए अथाग महेनते रचेला भापणा जैन साहि. त्यना संग्रहस्थानो (भंडारो) क्या क्या छे अने तेमां क्या क्या ग्रंथो सुरक्षित रीते अवशेष रह्या छे. तथा ते ग्रंथो केवी स्थिति भोगवे छे. तेनो तपास करी एक टीप तरतमा प्रसिद्ध करवानी अत्यंत अगत्य छे एम जाणी कोन्फरन्स ओफीसना पुस्तकोद्धार खाता तरफथी प्रसिद्ध भंडारोनी जाणवा जोग माहिती सार्थनी उपयोगी टीपो करवा माटे विद्वान पंडितोने रोकी ते कार्यने माटे मोकलवामां आव्या. तेमना प्रयासथी

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