Book Title: Jain Granthavali
Author(s): Jain Shwetambar Conference
Publisher: Jain Shwetambar Conference Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ प्रस्तावना. शक्तिए एकाद पंथ पण न लखे ए बनवू असंभवित छे पण वखतो वखत देशमा पडता दुष्काळथी राज्यक्रांतियोथी तथा धर्मना झगडाने लइने थतां तोफानोथी आपणा अपूर्व ज्ञानीओनां बनावेला ग्रंथो आपणने मळी शकता नथी. आ विषयमा हजु शोध करवानो घणो बाकी छे अने हालमां मळता ग्रंथोनो बचाव करी कोन्फरन्स ते तरफ पण ध्यान आपका धारे छे प्रथम आ शोधनुं काम पूरु न करवानुं कारण आ प्रमाणे छे. जनसमुहने तारवा तथा तेमने सत्यमार्ग बताववा जेमणे पोताना आयुष्यना छेडा. सुधी प्रयास करेलो अने जेमनुं ज्ञान अगाध हतुं, एवा महात्माओ ग्रंथो न लखे एम तो बनेज नहीं, पण ते वखते छापखाना विगेरेना अभावे लखेला ग्रंथनी एक अगर ये प्रतो कोइ स्थळे होय अने ते अमदावादमा हालमा जेम एक भंडारना गृहनो अमिथी नाश थतां तेमां सेंकडो कीमति अने जेनी बीजी नकल भाग्येज मळे तेवा ग्रंथोनो नाश थइ गयो तेम आवा पूर्वधर महाराजाओना बनावेला ग्रंथानो पण नाश थएलो होवो जोइए एवं अनुमान थाय छे. अने तेथी रहेलु साहित्य बचावी लेवानु पहेला धार्यु छे. हालमा जे साहित्य मळ्युं छे अने मळे छे तेमां आगम शिवायना बीजा घणा ग्रंथो संवत् आठसें पछीनी सालमा लखाएला मळे छे, अने जो अमारूं अनुमान खरूं होय तो जे साहित्य आजे काळना, राजक्रांतिना अने रक्षकोना प्रभादना कारणथी नाश थतां बचेलं छे. ते तमाम साहित्य बार आनीथी चौद आनी जेटलं संवत् ८०० पछीना सैकामां लखाएलुं जोवामां आवे छे. बौद्धनुं पण आ समयमा पुरजोर हतुं भगवानना समकालीन बुद्धदेवनो मत धीमे धीमे पुरजोरमां आवतो जतो हतो. संप्रति महाराजाना प्रपिताए तेने आ देश अने बीजा देशमा पोतानी राज्यसत्ताने नीचे सारी रीते स्थापित कर्यो हतो, परंतु आ देशमा आपणा धुरंधर पंडीतो विद्यमान होवाथी आपणा धर्मने ते लोको काइ नुकशान करी शक्या नहोता. ज्ञाननी न्यूनता थता ज्ञानना घारक महात्माओ कमती थता बौधोने पण आपणा धर्मपर हल्लो करवानुं मन थयु. आ समय संवत् ५२३ पछीनो गणवानो छे. आ समयमा शिलादित्य राजानी सभामा प्रतिज्ञापूर्वक वाद थयो वादमां एवं ठरेलु के हरनारने देशपार कहाडवा. एमां बौधो हारवाथी तेओ देशपार थया एवो संभव छ विक्रम पछी कोईपण जैन राजा थयो होय तेवो इतिहासिक लेख जणातो नथी, अने तेथी

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 504