Book Title: Jain Granthavali
Author(s): Jain Shwetambar Conference
Publisher: Jain Shwetambar Conference Mumbai
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प्रस्तावना. पण अफसोस! ए समय बदलायो अने आधुनिक अवसर्पिणी कालांतर्गत छ काळमांना पांचमा दुःषम काळना प्रभावे ज्ञानरूपी समुद्रमा ओटनी शरुआत थई.
शाशन नायक श्री महावीरस्वामी निर्वाणगत थया पछी गौतमस्वामी, सुधर्मस्वामी, जंबुम्वामी आदि पंचम महाज्ञानना धारक थया. पण तेमना मोक्षमां जवा साथे ज्ञान घटतुं चाल्यु. आधारविना जेवी आधेयनी स्थिति ते अनुसारे दिनप्रतिदिन आ ज्ञानना आधार न रह्या. छेवटे ते एटली हद सुधी गुप्त थयुं के वीरपरमात्माना निर्वाण पछी आशरे बसो वर्षना अंतरमां श्री भद्रबाहुस्वामी पछी तो श्रुत केवळीनी पण परिसीमा जेवू थयु. तेमज पूर्वो पण विच्छेद थता गया. भद्रबाहुस्वामीना वखतमां बार वर्षनो भयंकर दुष्काळ पडतां तीर्थकर महाराजथी सांभळेली त्रिपदीना आधारे गणधर भगवाने रचेला सूत्ररूप आगममांनुं बारमुं अंग नामे दृष्टीवाद जे अनेक विद्यावोथी भरपुर हतुं तेनो पण लोप थयो.
आम ज्ञानरूपी समुद्रनो ओट थतो जोई वीरप्रभुथी ९९३ वर्षे एटले विक्रम सं. ५२३ मां दीर्वदृष्टी सूरिवर्य देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण महाराजे भविष्यमां शनैः शनैः सर्वथैव थनार नाश तरफ पोतानी ज्ञानदृष्टी फेरवी आत्मशक्ति बळे पोताना तेमज बीजा आचार्य भगवानोना स्मरणमा रहेला ज्ञानने पुस्तकारूढ कयु. आवो उद्धार बे जग्याए थयो. एक मथुरामा अने बीजो वल्लभीपुरमां के जे माथुरी भने वल्लभिवांचना रूपे हालमां जणाय छे. आम आत्मशक्तिमा रहेनारा ज्ञानमाथी यत्किंचित् लखी शकाय तेटला शब्दो टुंकाणमां पुस्तकरूपमा लखाया. आ पूज्य महाशय आपणा उपर अगणित उपकार करी गया छे. एटलंज नहि पण तेओए अणीना वखते आपणा धर्मना ज्ञानरूपी स्थंभोने जमीनदोस्त थवाना भयंकर भयमाथी बचाव्या छे. समयनी स्थितिनो विचार करीए तो आपणने चौकस रीते मालम पडशे के जो आ महाशये समयसूचकता वापरीने ज्ञानने पुस्तकारुढ करवानी हिंमत नहीं करी होत तो हालमां प्रथमना प्रमाणमांजे स्वल्प साहित्य पण आपणी नजर आगळ देखाय छे तेनो शतांश के सहस्रांश पण जोवाने आपणा चक्षु भागशाळी थात नहीं. ए वात निर्विवाद छे. शास्त्रमा कहेली आगमोनी *पदसंख्याना प्रमाण तरफ जोतां हालमा जे आगमो दृष्टिगोचर थाय छे तेनी पदसंख्या घणीज ओछी छे, अने तेमां पण अमुक अमुक स्थळे एक बीजा आगममा केटलीक वातो फेरफार जणाय छे. आ कारणथी केटलाक आगमोपर अविश्वास लावे छे, तेने अमे एटलुंज
* आचारंगमा २६०० पद अने त्यार पछी दरेक अंगमा बमणा वमणा पद कथा छे. पदनुं प्रमाग पग मोटुं छे.

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